Thursday, January 17, 2008

तौबा क्या है?

हदीस शरीफ में आया है कि गुनाहों से तौबा करने वाला ऐसा है कि गोया गुनाह नही किया।हमेशा गुनाहों में मुब्तला रहना और उनसे कुछ नेकी में आना यह काम शैतानों और नायब शैतानों का है और हमेशा खुदा तआला की फरमाबरदारी में रहना हमेशा अपने खालिक व मालिक के हुक्म से बाहर न जाना यह काम फरिश्तों का है। आदम और बनी आदम का काम अवामिर को बजा लाना और नवाही से बाज रहना है। अगर नफ्स व शैतान के अगवा से गुनाह सादिर व सरजद हो उससे तौबा करना। हदीस शरीफ में आया है कि बेहतर बनी आदम वह लोग है जो गुनाह के बाद तौबा करे। आदमी गुनाह से माखूज नही होता बल्कि तर्के तौबा से माखूज होता है और आदमी तौबा करने से ऐसा होता है जैसा कि मां के पेट से बच्चा पैदा हुआ हो या झाड़ से जैसे पत्ते गिरते हैं मगर शर्त इसमें यह है कि दिखावा और फरेब के नाम व निशान के वास्ते न हो सिर्फ अल्लाह के वास्ते हो तो वह तौबा बेशक कुबूल होती है। अल्लाह पाक की रहमत बहाना ढूंढती है और थोड़ी सी नेकी से उसके गुनाह बख्श देती है।तौबा से नूर मारफत ईमान पैदा होता है और आदमी उस नूर की रौशनी से देखता है कि गुनाह जहर कातिल है और जब वह देखता है कि गुनाह जहर कातिल है और उसने उस जहर को बहुत खाया है और अब हलाकत के नजदीक पहुंच गया है तो जरूर उसमें शर्मिदंगी और खौफ पैदा हो जाता है।जैसे वह आदमी जिसने जहर खाया हो, शर्मिदां होता है और डरता है और उस शर्मिदंगी की वजह से हलक में उंगली डालता है ताकि उल्टी कर दे और फिर उस पर उसकी तवज्जों दूर की तदबीर करता है ताकि उस जहर का जो असर पैदा हुआ है वह दूर हो जाए। इस तरह आदमी जब देखता है कि मैने (बुराई) का वह जहर आलूद शहद की तरह थी कि उस वक्त तो मीठा मालूम होता है गुनाहों पर शर्मिदां होता है और उसकी जान में खौफ की आग लग जाती है। वह अपने आप को हलाक व तबाह देखता है और उसमें ख्वाहिश और गुनाह की जो हिस होती है वह उस आग में जल जाती है और वह ख्वाहिश मसर्रत में बदल जाती है और वह पिछले गुनाहों की तलाफी का कसद व इरादा करता है और कहता है कि आइंदा कभी भी गुनाह के नजदीक न जाएगा और पहले अहले गफलत के पास बैठता था अब अहले मारफत की सोहबत में बैठता है।तौबा हकीकत में पशेमानी है और इसकी अस्ल मारफत ईमान का नूर है और इसके हालात का तब्दील कर देना और मासियत व मुखालिफत से तमाम हिस्से को बाज रखकर अल्लाह तआला की इबादत करना है।हजरत सैयदना अली करमुल्लाह फरमाते हैं कि हम लोगो के लिए दुनिया में कयामत तक रहने वाली चीज+ ईमान इस्तगफार है। हजरत जुनैद बगदादी फरमाते हैं कि तौबा का कमाल यह है कि दिल लज्जते गुनाह बल्कि गुनाह ही भूल जाए तौबा इस्तगफार बजाये खुद इबादत हो। सूफिया का इरशाद है कि हम लोग गुनाह करके तौबा करते हैं लेकिन खासाने खुदा इबादत करके तौबा करते हैं।अल्लाह तआला की रहमतों के हुसूल के लिए गुनाहगार गुनाहो से बाज आजाएं और अच्छे पारसा और नेक लोगों की सोहबत में रहे और अपनी नेकी को कम जाने और तौबा करते रहे। अल्लाह पाक से मगफिरत चाहना बन्दों के लिए सआदते अजीम है।डाक्टर सैयद उस्मान कादरी

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