Monday, April 7, 2008

इस्लाम में औरत की हैसियत

इस्लाम औरत को ज़ुल्म व अत्याचार खड्डे से निकाल कर उसे सारे मानवीय अधिकार दिए, उसे सम्मान व श्रेष्ठता प्रदान की और समाज को उस का सम्मान करना सिखाया .जैसा के इस से पूर्व के समय में उसे प्राप्त नहीं था । वह भी ऐसे समय में जब औरत गुलामी की जिंदगी गुजार रही थी । कुरान ने पूरी शक्ती के साथ कहा-- ऐ लोगो ! अपने रब से डरो, जिसने तुम्हें एक जानसे पैदा किया है। और उससे उस का जोडा बनाया और बहुत से मर्द और औरतें फैला दिए ; और अल्लाह से डरो जिसका वास्ता दे कर तुम एक दुसरे से अपने हक मांगते हो। और रिश्तों का सम्मान करो । निस्संदेह , अल्लाह तुम्हारी निगरानी कर रहा है। (क़ुरान४: साथ माँ के रूप में औरत की हैसियत - और हमने मनुष्य को उसके माता-पिता के ह्जक पहचानने की ताकीद की है। उसकी माँ ने सख्ती पर सख्ती झेल कर उसे अपने पेट में रखा और दो वर्ष में उस का दूध छूटा । हमने आदेश दिया किमेरे कृतज्ञ बनो और अपने माता -पिता के भी कृतज्ञ बनो । मेरी ही ओर तुम्हें पलटना है। (कुरान ३१: उनके ) आन्हज़रत मुहम्मद (SA) का फरमान है - अल्लाह ने तुम पर हराम ठहरायी है , माँ की नाफरमानी और लड़कियों को ज़िंदा दफ़न करना । पत्नी के रूप में औरत- उनके साथ भले तरीके से जीवनयापन करो । अगर तुम उनको(औरतों )नापसंद करते हो तो हो सकता है की एक चीज़ तुम्हें नापसंद हो और अल्लाह ने उस में बहुत सी भलायी रख दी हो । (कुरान-४:१९ )
आन्हज़रत मुहम्मद (सा) इरशाद है -
ईमान वालों में सब से परिपूर्ण ईमान वाला आदमी वह है , जिस के अखलाक (व्यावहार )सब से अच्छा हो , और तुम में बेहतर वे लोग हैं जो अपनी औरतों के हक में बेहतर हों ।
बेटी के रूप में औरात-
आन्हज़रत मुहम्मद (सा) का इरशाद है -
अल्लाह त'आला जिस व्यक्ति को लड़कियों के द्वारा कुछ भी आजमाये , तो उसे चाहिए कि वह उनके साथ अच्छा व्यवहार करे । ये लडकियां उस के लिए जहन्नम (नरक )से बचाव का साधन होंगी । हदीस (बुखारी शरीफ )
एक अन्य स्थान पे फरमाया -जिस व्यक्ति की लड़की हो , वोह न तो उसे ज़िंदा दफन करे और न उस के साथ उपेक्षापूर्ण व्यावहार करे और न उसपर लड़के को प्राथमिकता दे , तो अल्लाह त'आला उसे जन्नत(स्वर्ग )में प्रविष्ट कराएगा ।
कुछ अन्य अधिकार -
आन्हज़रत मुहम्मद (SA) का फरमान है - 'बेवा व तलाक़ पायी हुयी औरतका निकाह नहीं किया जाएगा जब तक कि उस की राये न मालूम कर ली जाए, और अविवाहिता का निकाह नहीं होगा जब तक उस की अनुमति न ले ली जाए । '
* -- जो कछ माँ-बाप और रिश्तेदार छोडें , चाहे वोह थोडा हो या ज्यादा , उस में मर्दों का हिस्सा और औरतों का भी हिस्सा है -एक निर्धारित हिस्सा '(कुरान )
मुसलमान मर्द और मुसलमान औरतें एक दूसरे के सहयोगी हैं -भलायी का हुक्म देते हैं और बुरयी से रोकते हैं (कुरान ९:७१ )

Tuesday, April 1, 2008

स्वर्ग (जन्नत)के कुछ द्रश्य (नज़ारे)

वैदिक स्वर्ग के कुछ दृश्य और विशेषताएँ यहाँ पेश हैं-

'हजारों नहरें मधु के स्वाद वाली तीसरे आकाश में बहती हैं ' (ऋग्वेद ९:७४:६ )

घी के हौज मधु के तालाब शराब से बहती हुयी दूध -दही और पानी से सींचने वाली सब मीठी नहरे स्वर्ग में तुझे मिलेगीं और सब कमल वाली झीलें तुझे प्राप्त होंगी (अथर्ववेद ४:३४:६ )

वह ईश्वर मेरे पास शहद , घी और शराब के साथ आया है। (अथर्ववेद १०: ६ :२५ )

वहाँ बुढापा ,शोक और थकावट नहीं , न वहाँ कोई भय है ;वहाँ गंधर्व और मनोहर अप्सराएं नृत्य ,वाद्य ,गीतों ,नाना प्रकार के हास्य द्वारा मनोरंजन करती हैं। (सभा पर्व, महाभारत ,अध्याय ७,मन्त्र २४ )

युद्ध में मारे गए वीर के लिए जलदान ,स्नान ,और न अशौच संबंधी कौम किया जाता है । लडायी में मरेगाए शूरवीर की ओर हजारों अप्सराएं यह आशा लेकर बड़े उतावलेपनके साथ दौड़ती हैं कियह मेरा पति हो जाए । (महाभारत , शान्तीपर्व ,अध्याय ९८ )

Monday, March 31, 2008

अप्रिल फूल की हकीक़त

मुस्लिम कौम को बेवकूफ बनाने का दिन है अप्रिल फूल यानी १ अप्रैल । यही वो दिन है जब यहूदी साजिश पूरी तरह कामयाब हुयी और स्पेन की आखिरी सल्तनत और उसका किला (Grenada )गर्नातः फतह कर लिया गया। और इसी दिन को अप्रिल फूल के तौर पर मनाया। जानते हैं क्यों ? क्योंकी इसी दिन मुस्लिम फौज को बेवकूफ बना कर स्पेन की मुस्लिम हुकूमत को गुलाम बनाया गया।
स्पेन को जीतना किसी भी फौज के लिए बहुत कठिन मरहला था । वो इसलिए क्योंकि स्पेन के मुस्लिम राकावे वाले परहेज़गार मुसलमान थे जिन से लड़ कर जीतना मुमकिन नहीं था इस लिए यहूदी ताक़तों ने ये साजिश की कि उन्हें शराब और सिगरेट को मुफ्त पिलाना शुरू किया और जब पाया कि इनके ईमान ख़राब हो चुके हें उन पर हमला कर दिया और इस चाल से स्पेन की आठ सौ साल पुरानी इस्लामी हुकूमत को अपने कब्जे में ले लिया यह दिन था एक अप्रैल का । और इसी दिन से शुरुरात हुयी अप्रिल फूल बनाने की,यह दिन सिर्फ़ स्पेन की तारिख का काला दिन नहीं था बल्कि मुस्लिम काम के लिए सबक आमोज़ दिन था, मगर हम आज भी उसी भूल को दोहरा रहे हैं ख़ुद को अप्रिल फूल बना रहे हैं काश हम समझ पाते और अप्रिल फूल बनने के बजाये अपने ईमान को मज़बूत करके इस तरह के दिनों को एक सबक और इबरतनाक दिन के तौर पर लेते और यहूदी और ईसाई साजिशों के जाल में न फसते .

Friday, January 18, 2008

vi ) हज़रत सुल्तान आफरीन साहब (बड़े सरकार) की ज़ारत (बदायूँ)

हज़रत सुल्तान आरफीन साहब का जन्म 1215 ई० में यमन में हुआ था। यह अरब के शाही शानदान से संबंधित थे। बचपन से ही इनकी रुचि धार्मिक विषयों में अधिक थी। उम्र बढ़ने के साथ - साथ धार्मिक क्षेत्र में हज़रत साहब की रुचि बढ़ती गई जिसका परिणाम यह हुआ कि उन्होंने घर त्याग दिया और फकीर का जीवन व्यतीत करने लगे। बाद में हज़रत साहब अरब से हिन्दुस्तान रवाना हुए यहाँ आकर उन्होंने बदायूँ के निकट एक सूनसान स्थान पर रहना प्रारम्भ किया । लोक कहावत के अनुसार फ़कीर होने के उपरान्त हज़रत साहब में विशिष्ट प्रकार की दिव्य शक्ति विकसित हुई । इस दिव्य शक्ति के बल पर हज़रत साहब विभिन्न रोगों से ग्रसित मरीजों का इलाज करने लगे। शनै: शनै: उनके पास आने वाले मरीजों की संख्या में तीव्र गति से वृद्धि होने लगी।
लोकप्रियता के इस क्रम में लोग उन्हें बड़े सरकार के नाम से सम्भोधित करने लगे। बड़े सरकार के बारे में एक लोक मान्यता अत्यन्त प्रसिद्ध है। इसके अनुसार -- "एक बार एक ऐसा मरीज बड़े सरकार के पास आया , जिसका आधा जि पत्थर का हो गया था। बड़े सरकार ने उस मरीज के शरीर पर दृष्टि डाली। देखते ही देखते उसके शरीर का पत्थर मोम की तरह पिघलकर बह गया और वह मरीज दुरुस्त होकर वापस अपने घर चला गया।"बड़े सरकार का कहना था कि यदि कोई मरीज तीन दिनों में उनके इलाज से दुरुस्त नहीं होता, तो लोग उन्हें जिन्दा ही कब्र में दफन कर सकते हैं।
वर्तमान में बड़े सरकार की मज़ार बदायूँ में उसी स्थान पर मौजूद है जहाँ वह रहते थे और जहाँ बाद में उन्हें दफन किया गया था। आज के इस वैज्ञानिक युग में भी लोगों में यह धारणा अत्यन्त प्रबल है कि बड़े सरकार की ज़ारत पर इबादत करने वाले की बड़े और असाध्य रोगों के रोगी भी ठीक हो जाते हैं। यहाँ देश - विदेश से हजारों की संख्या में मरीज आते हैं और स्वास्थ्य लाभ प्राप्त करते हैं।यहाँ आने वाले मरीजों में दिमागी मरीजो की संख्या ज्यादा होती है। इसके अतिरिक्त ऐसे व्यक्ति भी अपने इलाज के लिए यहाँ आते हैं दिन पर बुरी हवाओं का असर होता है । इस प्रकार के रोगियों का इलाज 40 दिन तक लगातार चलता है। इलाज की प्रक्रिया में मरीज को बड़े सरकार की मजार शरीफ से स्पर्श कराया जाता है। विभिन्न रोगों से ग्रस्त रोगी बड़े सरकार की ज़ारत के प्रांगण में बने स्थाई तथा अस्थाई आवासों में नि:शुल्क रहते हैं।पूर्णतया स्वस्थ हो जाने के उपरान्त यह रोगी अपने घरों को वापस चले जाते हैं।

vii ) हज़रत बदरुद्दीन शाह (छोटे सरकार) की ज़ारत (बदायूँ)
हज़रत बदरुद्दीन बड़े सरकार के छोटे भाई थे। इनको छोटे सरकार के नाम से प्रसिद्धि मिली। यह सुल्तान उल आरफीन के शिष्य थे। छोटे सरकार की रुचि भी बचपन से धार्मिक विषयों में थी। बड़े होकर यह भी अरब छोड़कर अपने भाई के भांति बदायूँ के निकट एक शान्त क्षेत्र में निवास करने लगे। छोटे सरकार को भी विशिष्ट दिव्य शक्ति प्राप्त थी। इन दिव्य शक्तियों के बारे में तरह- तरह की मान्यताएं प्रचलित है। एक मान्यता के अनुसार -- "एक बार चार व्यक्ति छोटे सरकार के पास आए और अपने गुरु से प्राप्त सोना उनको दिखाया जो उन्हें गुरु की सेवा करने के बदले में मिला था। छोटे सरकार ने उस सोने को कुँए में फेंक दिया। अब छोटे सरकार ने उन चारों व्यक्तियों को आदेश दिया कि वे बाल्टियों में उस कुएं का पानी भरकर लाएं। उन चारों ने ऐसा ही किया। अब छोटे सरकार ने अपनी दिव्य शक्ति का प्रयोग करते हुए चारों बाल्टियों में भरे पानी को सोने में परिवर्तित कर दिया । वे चारों व्यक्ति अत्यन्त प्रसन्न हुए और अपने घरों को लौट गए।"
छोटे सरकार की मृत्यु के पश्चात् उनके अनुयायियों ने उनकी मज़ार शरीफ का निर्माण कराया जो बदायूँ नगर के समीप स्थित है।एक मान्यता को अनुसार छोटे सरकार की मज़ार पर मुगल बादशाह अकबर भी आया था। अकबर ने यहाँ पुत्र प्राप्ति की मन्नत माँगी थी। यह मन्नत पूर्ण हुई और उसके यहाँ सलीम का जन्म हुआ। अकबर ने प्रसन्न होकर 700 बीघा जमान छोटे सरकार की दरगाह के नाम कर दी। आज भी देश विदेश से असंख्य लोग छोटे सरकार की दरगाह पर आते हैं और मनोकामनाएं माँगते हैं।इसके अतिरिक्त छोटे सरकार की दरगाह पर भी विभिन्न रोगों से ग्रसित रोगी अपने इलाज़ के लिए आते हैं । यहाँ मानसिक बीमारियों से ग्रस्त लोगों को विशेष लाभ मिलता है। छोटे सरकार की जारत पर बुरी हवाओं के प्रभाव से ग्रस्त लोग भी अपने इलाज के लिए आते हैं।
छोटे सरकार की ज़ारत पर इलाज कराने आये लोग (बदायूँ)

v ) हज़रत शाह बुलाकी साहब की ज़ारत (मुरादाबाद)

हज़रत शाह बुलाकी साहब का जन्म 1042 हिज़री संवत् में स्योहारा (जिला बिजनौर) में हुआ था। हज़रत साहब बचपन से ही बहुत प्रतिभाशाली थे। मदरसे में वह सदैव अपने सहपाठियों से अलग रहा करते थे। इनके सहपाठी इनको दीवाना और पागल कहकर चिढ़ाते थे। मदरसे में जब उनके उस्ताद ने जब इनसे विस्मिल्लाह शब्द बोलने को कहा , तब शाह बुलाकी साहब ने विस्मिल्लाह शब्द की व्याख्या अपने तरीके से की। इस पर उस्ताद चकित रह गए और उन्होंने समझ लिया कि यह बालक अत्यन्त असाधारण है तथा भविष्य में यह लोगों में ज्ञान का प्रकाश बिखेरेगा । हज़रत साहब ने मात्र सात वर्ष की आयु में कुरान का अध्ययन पूर्ण कर लिया था। आपको इस आयु में कुरान पूरा जुबानी याद था। शाह बुलाकी साहब को अपाहिजों , बेवाओं तथा निर्धनों की सहायता करने में बहुत संतुष्टि मिलती थी।
वह अपनी आत्मिक शान्ति के लिए अपाहिजों , बेवाओं तथा निर्धनों के घरों में सफाई इत्यादि का कार्य किया करते थे। जब साथ के लोगों ने इनका विरोध किया , तब यह मुरादाबाद आकर रहने लगे। उन्होंने मुरादाबाद में एक मस्जिद का निर्माण कराया (मोहल्ला चक्कर का मिलाक में)। आज भी इसी मस्जिद के निकट हज़रत शाह बुलाकी साहब की ज़ारत मौजूद है।

iii ) हज़रत शाह महबूबे इलाही का मज़ार शरीफ (रामपुर)

हज़रत शाह महबूबे इलाही, हज़रत हाफिज सैय्यद शाह कादरी के शिष्य थे। हज़रत शाह महबूबे इलाही ने भी लोगों को हिन्हू मुस्लिम एकता का संदेश दिया था।इनकी मज़ार रामपुर नगर में एक खूबसूरत इमारत के भीतर स्थित है। लोगों की मान्यता है कि यहाँ सच्चे दिल से माँगी हर मुराद पूर्ण होती है।लोक मान्यता है कि हज़रत शाह महबूबे इलाही की आत्मा अमर है और वह गरीब, आवश्यकतामन्द तथा तकलीफ से ग्रसित लोगों की फरियाद अवश्य सुनते हैं।
iv ) हज़रत अब्दुल्लाह शाह बगदादी का मज़ार शरीफ (रामपुर)रामपुर नगर में लगभग 200 वर्ष पूर्व हज़रत अब्दुल्लाह शाह बगदादी नामक महापुरुष हुए। यह दिव्य शक्ति से युक्त थे तथा इन्होंने भी सदैव हिन्दू मुस्लिम एकता पर बल दिला। रामपुर नगर में स्थित इनकी ज़ारत पर बड़ी संख्या में लोग आते हैं। इन लोगों में हिन्हू तथा मुस्लिम दोनों ही सम्प्रदाय के लोग सम्मिलित होते हैं।

ii ) हज़रत जमाल उल्लाह कादरी का मज़ार शरीफ (रामपुर)

हज़रत हाफिज़ सैय्यद शाह ज़माल उल्लाह कादरी का जन्म लगभग 300 वर्ष पूर्व पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के गूजरवाला जिला में हुआ था।रामपुर के नवाब फैजुल्ला खाँ इनके मुरीद थे। हज़रत साहब पहले नवाब फैजुल्ला खाँ की सेना में कार्यरत थे। हज़रत साहब स्वभाव से अत्यन्त विनम्र थे। आपके रहने का ढ़ंग सादगी से परिपूर्ण था। हज़रत साहब की दयालु प्रवृति को इस दृष्टान्त से ही समझा जा सकता है कि फौज में काम करने के बदले में प्राप्त वेतन को यह गरीबों में बाँट देते थे। हज़रत हाफिज सैय्यद शाह ने अपने जीवन के दौरान कभी भी हिन्दू और मुसलमानों में भेद नहीं माना । ये हिन्दू मुस्लिम एकता के पक्षधर थे। इनके बारे में लोक मान्यता है कि इन्हें विशेष ईश्वरीय शक्ति प्राप्त थी । एक लोक मान्यता के अनुसार --
"एक बार हज़रत सैय्यद शाह जमाल साहब कहीं जा रहे थे। कुछ शरारती लोगों ने हज़रत साहब को परेशान करने की योजना बनाई। योजना के अनुसार उन लोगों में से एक व्यक्ति धरती पर मृतक के समान लेट गया। उन लोगों ने मृतक समान लेटे हुए व्यक्ति के निकट बैठकर अल्लाह की इबादत करने हेतु हज़रत साहब से आग्रह किया। हज़रत साहब ने उन लोगों से पूछा कि मैं जिन्दा व्यक्ति के लिए इबादत कर्रूँ अथवा मृत व्यक्ति के लिए ? इस पर वह लोग बोले कि हमारा साथी मृत है , आप मृत व्यक्ति के लिए इबादत करें। यह सुनकर हज़रत साहब ने अल्लाह की इबादत की। इबादत के समाप्त होते ही मृतक के समान लेटा हुआ व्यक्ति वास्तव में मृत हो गया "।हज़रत हाफिज सैय्यद शाह कादरी के जीवन के सम्बन्धित ऐसी अनेक कथाएं हैं जो उनकी दिव्यता को प्रमाणित करती है। हज़रत साहब की मजार रामपुर नगर में एक अत्यन्त खूबसूरत इमारत में स्थित है। इस जारत पर इबादत करने वालों में हिन्दू और मुसलमान दोनों समान रुप से आते हैं। लोगों की मान्यता है कि यहाँ माँगी गई हर मन्नत पूरी होती है। यदि सच्चे दिल से हज़रत साहब की ज़ारत पर सिर नवाया जाए, तो हर तकलीफ का अन्त होता है।

ix ) जामा मस्जिद (रामपुर)
रामपुर नगर में स्थित जामा मस्जिद खुदा की इबादत के लिए एक अत्यन्त पवित्र एवं प्रसिद्ध स्थल है। इस मस्जिद का निर्माण 1180 हिज़री संवत् 1176 ई०) में रामपुर के नवाब फैजउल्लाह खाँ ने करवाया था। कालान्तर में नवाब कल्वेअली खाँ ने 1297 हिज़री संवत् (1874 ई०)में इस मस्जिद का जीर्णोद्धार करवाया । इसके बाद 1331 हिज़री संवत् (1913 ई०) में पुन: इस मस्जिद का जीर्णोद्धार करवाया गया , जिसका श्रेय तत्कालीन नवाब हामिद अली खाँ को जाता है।
यह मस्जिद एक ऊँचे धरातल पर अत्यन्त बड़े प्रांगण में स्थित हैं।मस्जिद की मुख्य इमारत के ऊपर तीन विशाल गुम्बद तथा चार मीनारें अवस्थित हैं।

तीनों गुम्बदों के ऊपर आलीशान कलश चढ़े हुए हैं।मस्जिद की मुख्य इमारत के द्वार पर एक दो रुखा घण्टा लगा हुआ है जिसे लन्दन से मँगवाया गया था। रामपुर के जामा मस्जिद के प्रति लोगों में अपार श्रद्धा है। विभिन्न मुस्लिम त्यौहारों के अवसर पर असंख्य यहाँ नमाज अदा करते हैं। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि यहाँ आकर सच्चे दिल से इबादत करने पर हर मुराद पूरी होती है।