Thursday, January 17, 2008

नबी करीम (सल०) की चन्द हिदायतें

हर अच्छी बात सदका है - हजरत जाबिर (रजि०) से रिवायत है, कहते हैं कि नबी करीम (सल०) ने फरमाया कि हर भली बात सदका है। (बुखारी)
मारूफ :- अच्छी और भली बात जो शरीअत से साबित हो और उसके करने में सवाब हो, चाहे आदत व रिवाज उसके मुखालिफ हो या मवाफिक उसमें फर्ज, वाजिब, सुन्नते मोकिदा वगैर मोकिदा सब दाखिल है और हर वह जायज काम भी दाखिल है जो अल्लाह की रजा की खातिर किया जाए। अगर नेक नियत से न भी किया जाए और दूसरों को उससे फायदा पहुंच जाए तो भी मारूफ है।सदका :- वह जरा सी चीज जो इंसान सिर्फ अल्लाह तआला के लिए सच्चे दिल से देता है। उसमें भी फर्ज, वाजिब, सुन्नत, मुस्तहब सब चीजें दाखिल हैं। मिसाल के तौर पर समझिए कि जैसे हर सदका पर सवाब मिलता है नेक नियत से किए गए हर नेक काम पर सवाब मिलता है। इसलिए जिस गरीब के पास माल न हो वह नेक आमाल के जरिये सदके का सवाब हासिल कर सकता है।हदीस की तशरीह :- किसी छोटे से छोटे नेक काम को भी छोटा और हल्का न समझा जाए और मामूली से मामूली काम में या बात में कंजूसी न की जाए। हर नेकी को जो जाहिरन छोटी हो मगर सवाब के एतबार से बड़ी होती हैं। अभी कुछ दिन पहले हजरत मौलाना शाह अब्दुल गनी फूलपुरी (रह०) और हजरत मुही उस्सना शाह मौलाना इबरार उल हक मरकदा के खलीफा अंजल हजरत मौलाना शाह मुफ्ती मोहम्मद अब्दुल्लाह फूलपुरी ने यह इरशाद फरमाया कि आदमी अपने हिस्सों से बहुत कम वक्त में करोड़ों नेकियां कमा सकता है। हजरत के कहने का मंशा था कि इंसान कद्र करे कि उसके अल्लाह तआला ने किस कदर कीमती मशीन इन हिस्सों की शक्ल में अता फरमाई है कि उससे नेकियां कमाए। फरमाया कि अगर आदमी एक बार जबान से ÷सुब्हान अल्लाह' कह ले तो उसके बदले में अल्लाह तआला उस के लिए जन्नत में एक ऐसा पेड़ देते हैं जिसका साया एक घुड़सवार सौ साल की मुसाफत में पूरी कर सकता हैं एक बार सुब्हानअल्लाह कहने में न तो कुछ वक्त लगता है और न कोई परेशानी होती है, काम इस कदर हल्का है और सवाब इस कदर ज्यादा, अल्ला हो अकबर।एक हदीस में है कि हर तसबीह सदका है। नेकी का हुक्म करना और बुराई से रूकना सदका है। बीवी से मिलना सदका है। तिरमिजी शरीफ और इब्ने हुब्बान की रिवायत है कि मुसलमान से नर्मी के साथ मिलना भी सदका है। किसी भूले हुए नावाकिफ को रास्ता बता देना सदका है। रास्ते से पत्थर, कांटा, हड्डी या कोई भी तकलीफदेह चीज का हटा देना सदका है, दूसरे भाई के लिए डोल खाली छोड़ देना भी सदका है। इन हदीसों से मालूम होता है कि सिर्फ माल देना ही सदका नहीं है जो मालदारों का काम है बल्कि गरीब से गरीब भी बहुत से नेक कामों में या नेक बात कहने में सदका का सवाब पा सकता है। इसलिए गरीब लोग मायूस न हों कि वह सदका खैरात नहीं कर सकते। अल्लाह तआला उनके लिए भी यह बातें सदका व खैरात के मकाम और इसी कदर सवाब की अता फरमा देती हैं।नर्म मिजाजी :- हजरत अबू जर गफ्फारी (रजि०) से रिवायत है कहते हैं रसूल (सल०) ने फरमाया कि तुम किसी भी अच्छी बात को छोटा और मामूली न समझो अगरचे वह यह हो कि तुम अपने भाई (मुसलमान) से नर्मी के साथ मिलो।रावी :- अबू जर (रजि०) यह कुन्नियत है, नाम जनदब बिन जनादा है, बनी गफ्फार कबीले से हैं, इसलिए गफ्फारी मारूफ है, बड़े सहाबा में उनका शुमार होता है और बड़े जाहिद हैं, मुहाजिरीन में से हैं, कदीम उल इस्लाम हैं, बाज का कौल है कि आप पांचवें मुसलमान हैं इस्लाम के तरीके पर सबसे पहले आप ही ने नबी करीम (सल०) को सलाम किया था। इस्लाम लाने के बाद अपनी कौम बनी गफ्फार की तरफ लौट गए थे, गजवा-ए-खंदक के बाद मदीना आए बाद में जबदा में कयाम किया। बत्तीस हिजरी में खलीफा सालिस हजरत उस्मान गनी की खिलाफत के जमाने में वही वफात पाई। हजरत अब्दुल्लाह बिन मसऊद (रजि०) ने आपके जनाजे की नमाज पढ़ाई और उसी दिन बाद में खुद हजरत अब्दुल्लाह बिन मसऊद (रजि०) भी वफात पा गए।
तल्क :- कुछ रिवायतों में तलीक भी आया है इसके मायनी खुला हुआ जिसमें शिकन न पड़े जैसे हंसने के वक्त होता है, यानी हंसी खुशी के साथ।
हदीस की तशरीह :- किसी नेक काम का चाहे वह कितना ही मामूली सा हो, बजाहिर कितना ही आसान हो, बेमशक्कत हो, बेखर्च हो, उसको छोटा मामूली समझना महरूमी की बात है, इस पर सवाब मिलता है।
आखिरत का सवाब सारी दुनिया के माल व दौलत, ऐश व आराम, एजाज व इकराम से बढ़कर है, इसको मामूली न समझा जाए। नर्म मिजाजी का अमल किस कदर हल्का और आसान है, बेमशक्कत है, मगर सदका का सवाब रखता है। इसलिए इंसान यह न समझे कि बड़े बड़े काम तो वाकई काम हैं, मामूली बातें काम नहीं। दूसरे यह बात भी है कि हर एक नेक काम दूसरे नेक कामों का जरिया और वास्ता बन जाता है, इसलिए कोई मामूली काम मामूली नहीं होता, वह किसी बड़े नेक काम का बीज बन जाता है और बड़े काम का जरिया भी चाहे बजाहिर छोटा हो हकीकत में बड़ा ही है। इसलिए उसको छोटा और बेमायनी न समझा जाए। क्योंकि अगर इस मामूली से नेक काम को मामूली समझकर न किया तो किसी बड़े नेक काम से महरूमी का सबब बन जाता है। क्योंकि जिस तरह एक छोटा नेक काम किसी दूसरे बड़े काम का जरिया बनता है उसी तरह एक मामूली नेक काम से महरूमी किसी बड़े नेक काम से महरूमी का सबब बन जाता है। इसी तरह किसी छोटे से छोटे नेक और दीनी काम को हल्का समझ कर छोड़ा न जाए, अगर किसी से इख्तिलाफ भी हो तब भी मिलने जुलने और हिदायते रसूल पर अमल करने की बरकत से एक दिन आपस का इख्तिलाफ खत्म हो जाएगा इंशाअल्लाह।
मुफ्ती बिलाल अहमद

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