Friday, January 18, 2008

मजारे आला हजरत (बरेली)

रुहेलखण्ड क्षेत्र में ऐसे अनेक मुस्लिम धार्मिक स्थल देखने को मिलते हैं , जिनके प्रति मुस्लिम तथा अन्य समप्रदाय के लोगों में गहरी आस्था है।इनमें से प्रत्येक स्थल की पृथक विशेषताएँ हैं, जो उस स्थल को अन्य स्थलों से अलग करती हैं। इन धार्मिक स्थलों में अग्रलिखित विशेष रुप से उल्लेखनीय हैं मजारे आला हजरत (बरेली)
आला हज़रत बरेली नगर में हुए ऐसे व्यक्तित्व का नाम है ,जिसने ज्ञान और विद्वता का प्रकाश चारों ओर बिखेरा । लोकमान्यता के अनुसार आला हज़रत का ज्ञान रुपी दिव्य प्रकाश प्रत्यक्ष रुप से ईश्वर से प्राप्त हुआ था। आला हज़रत की पैदाइश 14 जून 1856 को बरेली के मुहल्ला जिसौली में हुई थी। बचपन से ही वह कुदरती ज्ञान से युक्त थे । आपने चार वर्ष की आयु में ही कुरान मज़ीद नाज़िरा का अध्ययन पूर्ण कर लिया था । तेरह वर्ष की आयु में आला हज़रत ने अपनी शिक्षा पूर्ण की और दस्तीर फ़जीलत से नवाजे गए। आला हज़रत के बारे में यह कहा जाता है कि अल्लाह ताला ने अपने फज़ल से आपका सीना दुनिया के हर उलूम से भर दिया था। इन्होंने हर विषय पर किताबें लिखीं , जिनकी संख्या हजारों में हैं । आला हज़रत ने अपनी सम्पूर्ण जिंदगी बेवाओं और जरुरत मंदों की सेवा में व्यतीत की। आपके सारे कार्य सिर्फ अल्लाहताला के लिए थे। आपको किसी की तारीफ़ से कोई लेना- देना नहीं था। आपने दो बार (सन् 1878 ई० तथा 1906 में) हज की यात्रा की।

आला हज़रत की मज़ार शरीफ के ऊपर निर्मित गुम्बद (बरेली)
अपनी शिक्षाओं और उच्च विचारों के कारण आला हज़रत न केवल भारतवर्ष अपितु दूसरे देशओं में भी लोकप्रिय होने लगे। धीरे- धीरे आला हज़रत साहब के शिष्यों ओर अनुयायियों की संख्या बढ़ती जा रही थी। आपके शिष्यों में हज़रत मौलाना हसन रज़ा खाँ हज़रत मौलाना मुहम्मद रज़ा खाँ , मौलाना हामिद रज़ा खाँ, मौलाना सैय्यद अहमद, अशरफ कछौछवी, मौलाना सैय्यद जफरुद्दीन आदि केनाम प्रमुख हैं। अक्टूबर सन् 1921 में आला हज़रत ने इस दुनिया से विदा ली। लेकिन वह दुनिया के लिए ईमान और धर्म का सन्देश देकर गए, जो आज तक लोगों के हृदय में प्रकाशवन है। आपने आम आदमी के लिए सन्देश दिया था -
"ऐ लोगों तुम प्यारे मुस्तफा के भोले भेड़े हो। तुम्हारे चारों ओर भेड़िए हैं। वह चाहते हैं कि तुम्हें बहकाएं । तुम्हे फ़ितना में डाल दें। तुम्हें अपने साथ जहन्न्म में ले जाएं। इनसे बचो और दूर भागो। ये भेड़िए तुम्हारे ईमान की ताक में हैं। इनके हमलों से अपने ईमान को बचाओ। "आला हज़रत में बहुत सारी खूबियां एक साथ थीं। आप एक ही वक्त में मफुस्सिर, मोहद्दिस, मुफ्ती, कारी, हाफिज़, शायर ,मुसननिफ ,अदीब, आलिम ,फाजिल, शैखतरीकत और मजुददि शरीयत थे। आला हज़रत में घमण्ड नाम की कोई चीज़ नहीं थी। यह आला हज़रत की बेमिसाल कोशिशों का नतीजा है कि आज सुन्नी आक़ाएद पर यकीन रखने वाले लोग सिर्फ बरेली में ही नहीं वरन् तमाम दुनिया में मौजूद हैं।
आला हज़रत का मज़ार शरीफ बरेली स्थित मोहल्ला सौदागरन की एक विशाल और सुन्दर इमारत में है। यह इमारत भव्य गुम्बदों और नक्काशी के कारण अत्यन्त सुन्दर और मनोहर प्रतीत होती है। आलाहजरत की मज़ार पर हिन्दू और मुसलमान समान रुप से इबादत करने आते हैं। लोगों की मान्यता है कि आला हज़रत साहब की आत्मा अमर है और इनकी मज़ार पर शीश नवाने से मुरादें पूर्ण होने के साथ -साथ हृदय में ज्ञान का प्रकाश जागृत होता है।

viii ) ख़ानकाहे आलिया नियाज़िया (बरेली)
खानकाहे आलिया नियाजिया चिश्तिया सिलसिले की एक अहम शाखा है। इस संस्था के पूर्ववर्ती सरकारों के बारे में यह मान्यता है कि वे सभी महान सूफी ख्वाज़ा गरीब नवाज़ अजमेरी के रुहानी उत्तराधिकारी थे। बरेली स्थित इस संस्था के संस्थापक कुतुबे आलम मदारे आज़म नियाज़ वेनियाज़ हज़रत शाह नियाज़ अहमद साहब थे। वह लगभग 275 वर्ष पूर्व बुखारा (पाकिस्तान) से अपने परिवार के सदस्यों के साथ बरेली आए थे। उन्होंने बरेली में सूफीवाद की शिक्षाओं का प्रचार - प्रसार किया।धीरे -धीरे उनकी शिक्षाएं देश -विदेश में फैलने लगी। हज़रत साहब मानवता और साम्प्रदायिक एकता के प्रबल समर्थक थे। वे न केवल धार्मिक विषयों के ज्ञाता थे , बल्कि उच्च कोटि के कवि और विभिन्न भाषाओं के ज्ञाता भी थे।
कुतुबे आलम मदारे आज़म नियाज़ वेनियाज़ हज़रत शाह नियाज़ अहमद साहब की विद्वता का अनुमान एक दृष्टान्त से लगाया जा सकता है। 12 वर्ष की आयु में शिक्षा पूर्ण होने के उपरान्त जब आपको शिक्षा की उपाधि दी जाने लगी , जब आपने वह डिग्री लेने से मना कर दिया। हज़रत साहब ने कहा कि जब तक समस्त ज्ञानी बुजुर्ग मेरी परीक्षा नहीं लेते , तब तक मैं डिग्री स्वीकार नहीं कर्रूँगा। उनके ऐसा कहने पर विद्वान बुजुर्गों ने उनसे अत्यन्त गूढ़ प्रश्न पूछे । हज़रत शाह नियाज़ अहमद साहब ने सभी प्रश्नों का उत्तर अत्यन्त सहजता के साथ दिया। बुजुर्गों की सन्तुष्टि के उपरान्त ही आपने डिग्री स्वीकार की।
वर्तमान में हज़रत अहमद साहब की मज़ार बरेली के मोहल्ला ख्वाजा कुतुब में स्थित है। लोगों की मान्यता है कि हज़रत साहब की आत्मा अमर है और उनकी मज़ार पर इबादत करने से समस्त कष्टों से मुक्ति मिलती है। आपके मज़ार के बारे में एक आश्चर्यजनक लोक मान्यता यह है कि यहाँ आकर इबादत करने पर सपं , बिच्छू तथा अन्य विषैले जानवरों के काटने का असर स्वत: ही समाप्त हो जाता है। वर्तमान में प्रतिदिन इस तरह के असंख्य लोग आपकी मज़ार पर आते हैं। जिन्हें सपं या बिच्छू ने डसा है। आपकी मज़ार पर न केवल हिन्दुस्तान वरन् संसार के विभिन्न देशों से लोग आते हैं और इबादत करते हैं।
मुस्लिम धर्म में सूफीवाद ही एक ऐसी शाखा है जिसमें संगीत को रुहानी शुद्धी के माध्यम के रुप में अपनाया जाता है। कुतुबे आलम मदारे आज़म नियाज़ वेनियाज़ हज़रत शाह नियाज़ अहमद साहब की दरगाह पर प्रतिवर्ष (मार्च और नवम्बर माह में) भव्य संगीत सम्मोलनों का आयोजन किया जाता है। इन सम्मेलनों में शास्रीय संगीत की जानी - मानी हस्तियां शरीक होती हैं । अब तक लगभग 142 संगीतज्ञ यहाँ आ चुके हैं। इन संगीत सम्मेलनों में हज़ारों श्रोता रुहानी सुकून प्राप्त करते हैं।
xi ) बारा बुर्जी स्जिद (आँवला जिला बरेली)
आँवला तहसील में स्थित बारह बुर्जी मस्जिद मुसलमानों के लिए एक अहल महज़बी स्थान है। यह मस्जिद अपनी अनूठी वास्तुकला के कारण अत्यन्त आकर्षक व लोकप्रिय स्थान है। मस्जिद की मुख्य इमारत के ऊपर बने बारह विशाल गुम्बद इस मस्जिद की सुन्दरता में चार चाँद लगाते हैं। इन्हीं गुम्बदों के कारण इस मस्जिद का नाम बारह बुर्जी मस्जिद पड़ा ।
मुसलमान लोग बारह बुर्जी मस्जिद में गहरी श्रद्धा रखते हैं। ईद इत्यादि अवसरों पर न केवल स्थानीय वरन् आस पास के क्षेत्रों के मुसलमान भी बड़ी संख्या में आकर इस मस्जिद में नमाज अदा करते हैं।

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