Friday, January 18, 2008

ii ) हज़रत जमाल उल्लाह कादरी का मज़ार शरीफ (रामपुर)

हज़रत हाफिज़ सैय्यद शाह ज़माल उल्लाह कादरी का जन्म लगभग 300 वर्ष पूर्व पाकिस्तान के पंजाब प्रान्त के गूजरवाला जिला में हुआ था।रामपुर के नवाब फैजुल्ला खाँ इनके मुरीद थे। हज़रत साहब पहले नवाब फैजुल्ला खाँ की सेना में कार्यरत थे। हज़रत साहब स्वभाव से अत्यन्त विनम्र थे। आपके रहने का ढ़ंग सादगी से परिपूर्ण था। हज़रत साहब की दयालु प्रवृति को इस दृष्टान्त से ही समझा जा सकता है कि फौज में काम करने के बदले में प्राप्त वेतन को यह गरीबों में बाँट देते थे। हज़रत हाफिज सैय्यद शाह ने अपने जीवन के दौरान कभी भी हिन्दू और मुसलमानों में भेद नहीं माना । ये हिन्दू मुस्लिम एकता के पक्षधर थे। इनके बारे में लोक मान्यता है कि इन्हें विशेष ईश्वरीय शक्ति प्राप्त थी । एक लोक मान्यता के अनुसार --
"एक बार हज़रत सैय्यद शाह जमाल साहब कहीं जा रहे थे। कुछ शरारती लोगों ने हज़रत साहब को परेशान करने की योजना बनाई। योजना के अनुसार उन लोगों में से एक व्यक्ति धरती पर मृतक के समान लेट गया। उन लोगों ने मृतक समान लेटे हुए व्यक्ति के निकट बैठकर अल्लाह की इबादत करने हेतु हज़रत साहब से आग्रह किया। हज़रत साहब ने उन लोगों से पूछा कि मैं जिन्दा व्यक्ति के लिए इबादत कर्रूँ अथवा मृत व्यक्ति के लिए ? इस पर वह लोग बोले कि हमारा साथी मृत है , आप मृत व्यक्ति के लिए इबादत करें। यह सुनकर हज़रत साहब ने अल्लाह की इबादत की। इबादत के समाप्त होते ही मृतक के समान लेटा हुआ व्यक्ति वास्तव में मृत हो गया "।हज़रत हाफिज सैय्यद शाह कादरी के जीवन के सम्बन्धित ऐसी अनेक कथाएं हैं जो उनकी दिव्यता को प्रमाणित करती है। हज़रत साहब की मजार रामपुर नगर में एक अत्यन्त खूबसूरत इमारत में स्थित है। इस जारत पर इबादत करने वालों में हिन्दू और मुसलमान दोनों समान रुप से आते हैं। लोगों की मान्यता है कि यहाँ माँगी गई हर मन्नत पूरी होती है। यदि सच्चे दिल से हज़रत साहब की ज़ारत पर सिर नवाया जाए, तो हर तकलीफ का अन्त होता है।

ix ) जामा मस्जिद (रामपुर)
रामपुर नगर में स्थित जामा मस्जिद खुदा की इबादत के लिए एक अत्यन्त पवित्र एवं प्रसिद्ध स्थल है। इस मस्जिद का निर्माण 1180 हिज़री संवत् 1176 ई०) में रामपुर के नवाब फैजउल्लाह खाँ ने करवाया था। कालान्तर में नवाब कल्वेअली खाँ ने 1297 हिज़री संवत् (1874 ई०)में इस मस्जिद का जीर्णोद्धार करवाया । इसके बाद 1331 हिज़री संवत् (1913 ई०) में पुन: इस मस्जिद का जीर्णोद्धार करवाया गया , जिसका श्रेय तत्कालीन नवाब हामिद अली खाँ को जाता है।
यह मस्जिद एक ऊँचे धरातल पर अत्यन्त बड़े प्रांगण में स्थित हैं।मस्जिद की मुख्य इमारत के ऊपर तीन विशाल गुम्बद तथा चार मीनारें अवस्थित हैं।

तीनों गुम्बदों के ऊपर आलीशान कलश चढ़े हुए हैं।मस्जिद की मुख्य इमारत के द्वार पर एक दो रुखा घण्टा लगा हुआ है जिसे लन्दन से मँगवाया गया था। रामपुर के जामा मस्जिद के प्रति लोगों में अपार श्रद्धा है। विभिन्न मुस्लिम त्यौहारों के अवसर पर असंख्य यहाँ नमाज अदा करते हैं। स्थानीय लोगों की मान्यता है कि यहाँ आकर सच्चे दिल से इबादत करने पर हर मुराद पूरी होती है।

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