Thursday, January 17, 2008

सबसे अच्छे ईमान वाले

हजरत अब्दुल्लाह बिन उमरों (रजि०) से रिवायत है कि नबी करीम (सल०) ने इरशाद फरमाया- तुम में से सबसे अच्छे वह लोग है जिनके अख्लाक अच्छे है। (बुखारी व मुस्लिम)हजरत अबू हुरैरा (रजि०) से रिवायत है कि नबी करीम (सल०) ने फरमाया कि ईमान वालों में ज्यादा कामिल ईमान वाले वह लोग है जो अख्लाक में ज्यादा अच्छे हैं। (अबू दाऊद)

सबसे अच्छे ईमान वाले वह लोग है जिनके अख्लाक अच्छे है
मौलाना मोहम्मद मंजूर नोमानीनबी करीम (सल०) ने अपनी तालीम में ईमान के बाद जिन चीजों पर बहुत ज्यादा जोर दिया है और इंसान की सआदत को उन पर मौकूफ बतलाया है उनमें से एक यह भी है कि आदमी अच्छा अख्लाक अख्तियार करे और बुरे अख्लाक से अपनी हिफाजत करे। नबी करीम (सल०) की बैसत के जिन मकासिद का कुरआन मजीद में जिक्र किया गया है उनमें एक यह भी बताया गया है कि आप को इंसानों का तजकिया करना है और उस तजकिये में अख्लाक की इस्लाह और दुरूस्ती को खास अहमियत है।
हदीस की मुख्तलिफ किताबों में खुद आप से यह मजमून रिवायत किया गया है कि मै अख्लाक की इस्लाह के लिए भेजा गया हूं। यानी अख्लाक की इस्लाह का काम मेरी बअसत के अहम मकासिद और मेरे प्रोग्राम के खास हिस्सों में से है।होना भी यही चाहिए था क्योंकि इंसान की जिदंगी और उसके नतीजों में अख्लाक की बड़ी अहमियत है। अगर इंसान के अख्लाक अच्छे हों तो उसकी अपनी जिदंगी भी दिली सुकून और खुशगवारी के साथ गुजरेगी और दूसरों के लिए भी उस का वजूद रहमत और चैन का सामान होगा। इसके बरअक्स अगर आदमी के अख्लाक बुरे हो तो खुद भी वह जिदंगी के लुत्फ व खुशी से महरूम रहेगा और जिन से उसका वास्ता और ताल्लुक होगा उनकी जिदंगियां भी बेमजा और तल्ख होगी। यह तो खुशअख्लाकी और बदअख्लाकी के वह नकद दुनियावी नतीजे है जिनका हम और आप रोजाना मुशाहिदा और तजुर्बा करते रहते हैं। लेकिन मरने के बाद वाली हमेशा की जिदंगी में इन दोनो के नतीजे इनसे कई दर्जे ज्यादा अहम निकलने वाले है। आखिरत में खुशअख्लाकी का नतीजा अल्लाह की रजा और जन्नत है और बदअख्लाकी का अंजाम अल्लाह का गजब और दोजख की आग है।अख्लाक की इस्लाह के सिलसिले में नबी करीम (सल०) के जो इरशादात हदीस की किताबों में महफूज है वह दो तरह के हैं। एक वह जिन में आप ने उसूली तौर पर अच्छे अख्लाक पर जोर दिया है और उसकी अहमियत व फजीलत और उसका गैर मामूली आखिरत का सवाब बयान फरमाया है। दूसरे वह जिनमें आप ने कुछ खास खास अच्छे अख्लाक अख्तियार करने की या इसी तरह कुछ मखसूस बदअख्लाकियों से बचने की ताकीद फरमाई है।हजरत अब्दुल्लाह बिन उमरों (रजि०) से रिवायत है कि नबी करीम (सल०) ने इरशाद फरमाया- तुम में से सबसे अच्छे वह लोग है जिनके अख्लाक अच्छे है। (बुखारी व मुस्लिम)हजरत अबू हुरैरा (रजि०) से रिवायत है कि नबी करीम (सल०) ने फरमाया कि ईमान वालों में ज्यादा कामिल ईमान वाले वह लोग है जो अख्लाक में ज्यादा अच्छे हैं। (अबू दाऊद)मतलब यह है कि ईमान और अख्लाक में ऐसा लगाव है कि जिसका ईमान कामिल होगा, उसके अख्लाक लाजिमन बहुत अच्छे होंगे। उसका ईमान भी बहुत कामिल होगा। वाजेह रहे कि ईमान के बगैर अख्लाक बल्कि किसी अमल का यहां तक कि इबादतों का भी कोई एतबार नही है। हर अमल और हर नेकी के लिए ईमान बमंजिला रूह और जान के है। इसलिए अगर किसी शख्सियत में अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान के बगैर अख्लाक नजर आए तो वह हकीकी अख्लाक नही है बल्कि अख्लाक की सूरत है। इसलिए अल्लाह पाक के यहां इसकी कोई कीमत नही है।हजरत अबुल दरवा (रजि०) से रिवायत है वह नबी करीम (सल०) से नकल करते हैं कि आप ने इरशाद फरमाया कि कयामत के दिन मोमिन के मीजान अमल में सबसे ज्यादा वजनी और भारी चीज जो रखी जाएगी वह उसके अच्छे अख्लाक होंगे। (अबू दाऊद)कबीला मुजैयना के एक शख्स से रिवायत है कि कुछ सहाबा ने अर्ज किया या रसूल (सल०)। इंसान को जो कुछ अता हुआ है उसमें सबसे बेहतर क्या है? आप (सल०) ने इरशाद फरमाया- अच्छे अख्लाक।' (इसको इमाम बेहकी ने शोएबुल ईमान में रिवायत किया है और इमाम बगवी ने शरहुस्सना में इस हदीस को ओसामा बिन शरीक सहाबी से रिवायत किया है)इन हदीसों से यह नतीजा निकालना सही न होगा कि अच्छे अख्लाक का दर्जा ईमान या अरकान से भी बढ़ा हुआ है। सहाबा-ए-कराम जो इन इरशादात के मुखातिब थे उनको नबी करीम (सल०) की तालीम व तर्बियत से यह तो मालूम ही हो चुका था कि दीन के शोबों में सबसे बड़ा दर्जा ईमान और तौहीद का है। इसके बाद अरकान का मकाम है। फिर इनके बाद दीनी जिदंगी के जो मुख्तलिफ हिस्से रहते हैं उनमें मुख्तलिफ वजहों से कुछ को कुछ पर फौकियत और इम्तियाज हासिल है। बिला शुब्हा अख्लाक का मकाम बहुत बुलंद है और इंसानों की सआदत और फलाह में और अल्लाह पाक के यहां उनकी मकबूलियत व महबूबियत में अख्लाक को यकीनन खास दखल है।हजरत आयशा सिद्दीका (रजि०) से रिवायत है फरमाती है कि मैने नबी करीम (सल०) से सुना आप इरशाद फरमाते थे कि साहबे ईमान बन्दा अच्छे अख्लाक से उन लोगों का दर्जा हासिल कर लेता है जो रात भर नफिली नमाजें पढ़ते हों, और दिन को हमेशा रोजा रखते हों। (अबू दाऊद)मतलब यह है कि अल्लाह के जिस बन्दे का हाल यह हो कि वह अकीदा और अमल के लिहाज से सच्चा मोमिन हो और साथ ही उसको अच्छे अख्लाक की दौलत भी नसीब हो तो हालांकि वह रात को ज्यादा नफिले न पढ़ता हो और कसरत से नफिली रोजे न रखता हो लेकिन फिर भी वह अपने अच्छे अख्लाक की वजह से उन शबबेदारों और इबादतगुजारों का दर्जा पा लेगा जो रातें नफिले में काटते है और दिन को रोजा रखते हो।एक रिवायत में नबी करीम (सल०) ने इरशाद फरमाया कि तुम दोस्तों में मुझे ज्यादा महबूब वह है जिनके अख्लाक ज्यादा अच्छे हैं। (सही बुखारी)

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