

ये गीत पहली बार मौलाना शरर की उर्दू पत्रिाता इत्तेहाद में १६अगस्त् १९०४ को प्रकाशित हुआ । इस तराने के शीर्षक भी कई बार बदले गये। पहले यह ÷हमारा देश' के शीर्षक से प्रकाशित हुआ फिर हिन्दुस्तां हमारा' के नाम से प्रकाशित हुआ।इस गीत ने लोगों पर ऐसा प्रभाव छोड़ा कि यह सब की जुबान पर चढ़ गया बाद में इक़बाल ने अपने पहले कविता संग्रह ÷बांगे दरा' में इसे तराना-ए-हिन्द के नाम से शामिल कर लिया। स्वतंत्राता आंदोलन में इस गीत का महत्व इस बात से समझा जा सकता है कि १४-१५ अगस्त की रात में ठीक १२ बजे संसद में हुए समारोह में जन गण मन के साथ इक़बाल की इस रचना ÷सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा' को भी समूहगान के रूप में गाया गया।स्वतंत्राता की २५वीं वर्षगांठ पर १५अगस्त १९७२ को सूचना और प्रसारण मंत्राालय ने इस गीत की धुन तय कराई आज कल यही धुन प्रचलित है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने इस गीत को सुनकर कहा था कि यह हिन्दुतान की क़ौमी जु+बान का नमूना है। ये अलग बात है कि उर्दू हिन्दुस्तान की कौमी जुबान नहीं बन सकी। हिन्दी ने उर्दू पर बाज+ी मार ली।आज जब हम आजादी के ६० वर्ष पूरे कर चुके हैं तब इक़बाल द्वारा लिखे इस तराने का महत्व और भी बढ़ गया है। भारत की एकता आज पहले से अधिक जरूरी हो गई है और ये गीत सर्वधर्म एकता का ही प्रतीक है।इस गीत से संबंधित ये पहलू बहुत दुखदायक है कि कुछ लोग इस गीत को केवल इसलिए नज+र अंदाज करते हैं कि इसे इक़बाल ने लिखा था जिन्हें पाकिस्तान के गठन का समर्थक कहा जाता है। हाल ही में एक और देश भक्ति गीत वंदेमातरम १०० वर्ष पूरे होने पर जिस तरह कुछ लोगों ने हंगामा मचाया वह वास्तव में सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा का विरोध था। हालांकि सरकार की ओर से इस गीत को गाने के लिए बाध्य नहीं किया गया था फिर भी कुछ राज्यों में मुस्लिम संस्थानों को जान बुझ कर इस गीत को गाने पर बाध्य किया गया।बहर हाल सारे जहां से अच्छा हिन्दुस्तां हमारा का महत्व आज भी बरकरार है और आगे भी रहेगा क्योंकि स्वतंत्राता से संबंधित ये ऐसा गीत है जो सबकी समझ में बहुत आसानी से आ जाता है।
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