Thursday, January 17, 2008

हज़रत अली Razi0 का संक्षिप्त जीवन परिचय

इस दुनिया में, हर इंसान को अपनी ज़िन्दगी में बहुत से उतार चढ़ाव व परेशानियों का सामना करना पड़ता है। आम तौर पर तमाम इंसान मुशकिलों के मुक़ाबेले में कमज़ोरी का एहसास करते हैं और अपने हमदर्द लोगों की मदद से उन मुशकिलों से छुटकारा पाना चाहते हैं। हर इंसान यह भी चाहता है कि ज़िन्दगी के हर पहलू में किसी को अपना आइडियल बना कर उसका अनुसरण करते हुए अपनी ज़िम्मेदारियों को अच्छी तरह पूरा करे और खुश रहे।अतः पैगम्बरे इस्लाम (स.) की ज़ात तमाम इंसानों के लिए एक आइडियल है। क़ुरआने करीम ने भी आपको इसी रूप में प्रस्तुत किया है। अगर हम पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के अलावा किसी और इंसान को अपना आइडियल बनाना चाहें जो पैग़म्बरे इस्लाम का स्थान ले सके तो इसके लिए हमें हज़रत अली (अ.) की ज़ात नज़र आती है। कितना अच्छा हो अगर इंसान हज़रत अली (अ.) के अख़लाक़ व किरदार को अपनाने के लिए उनकी ज़िन्दगी के आश्चर्यजनक उतार चढ़ाव पर एक नज़र डाले। जन्म हज़रत अली (अ.) हाशमी ख़ान्दान के वह पहले बेटे हैं जिनके माँ और बाप दोंनों हाशमी हैं। उनरके पिता अबुतालिब पुत्र अब्दुल मुत्तलिब पुत्र हाशिम पुत्र अब्दे मनाफ़ हैं और मां फ़ातिमा बिन्ते असद पुत्र हाशिम पुत्र अब्दे मनाफ़ हैं।हाशिमी ख़ान्दान, कुरैश नामी क़बीले में और क़ुरैश अरबों के तमाम क़बीलों में अख़लाक, सिफ़ात और कमालात के लिहाज़ से तमाम लोगों में प्रसिद्ध थे। बहादुरी, शुजाअत और अन्य सिफ़ात बनी हाशिम से मख़सूस थे और यह तमाम सिफ़ात हज़रत अली (अ.) की ज़ात में सबसे अधिक मौजूद थे। जब हज़रत अली (अ.) की पैदाइश का वक़्त आया तो फ़ातिमा बिन्ते असद ख़ाना ए काबा के पास आयीं और अपने आपको उसकी दीवार से चिपकाने के बाद कहा “ऐ अल्लाह ! मैं तुझ पर तेरे पैग़म्बरों पर और तेरी तरफ़ से नाज़िल होने वाली किताबों पर और इस मकान को बनाने वाले अपने पूर्वज हज़रत इब्राहीम (अ.) के कथनों पर मुकम्मल ईमान रखती हूँ। पालने वाले तुझे इस मकान के बनाने वाले के एहतेराम और इस बच्चे के हक़ का वास्ता इसकी विलादत को मेरे लिए आसान कर दे। ”इस दुआ को अभी कुछ देर भी न हुई थी कि ख़ाना ए काबा की दक्षिणी पूर्वी दीवार फ़टी और फ़ातिमा बिन्ते असद काबे में दाख़िल हो गईं इसके बाद दीवार दोबारा अपनी असली हालत पर वापस आ गई। इस मनज़र को अब्बास पुत्र अब्दुल मुत्तलिब व यज़ीद पुत्र तअफ़ खड़े देख रहे थे। तेरह रजब सन् तीस आमुल फ़ील को काबे में ही हज़रत अली (अ.) की पैदाइश हुई। फ़ातिमा बिन्ते असद ज़मीन के सबसे मुक़द्दस (पवित्र) स्थान पर तीन दिन तक अल्लाह की मेहमान रहीं और जब तीन दिन के बाद हज़रत अली (अ.) को लेकर बाहर निकलना चाहा तो दीवार उसी जगह से दोबारा फटी और वह बाहर आ गईं और कहा कि मैंने एक ग़ैबी आवाज़ सुनी है जिसमें यह कहा गया हा कि इस बच्चे का नाम अली रखो। बचपन हज़रत अली (अ.) तीन साल तक अपने माँ बाप के पास रहे। और चूंकि अल्लाह की मर्ज़ी यह थी कि इस बच्चे में अधिक से अधिक कमालात (विशेषताएं) पाये जायें इस लिए पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने इस बच्चे को पैदाइश के वक़्त से ही अप्रत्यक्ष रूप से तरबीयत देना शुरू कर दिया था। जब एक साल मक्के में बहुत बड़ा अकाल पड़ा तो पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के चचा अबुतालिब के सामने आर्थिक संकट पैदा हो गया। प़ैगम्बरे इस्लाम (स.) ने अपने दूसरे चचा अब्बास से मशवरा करके यह फ़ैसला लिया कि हम अबुतालिब के एक एक बच्चे के पालन पोषण की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले लें, ताकि उनकी मुशकिल आसान हो जाये। इस फ़ैसले के अनुसार अब्बास ने अबुतालिब के बेटे जाफ़र और पैग़म्बरे इस्लाम ने हज़रत अली (अ.) के पालन पोषण की ज़िम्मे दारी स्वीकार कर ली। इस तरह हज़रत अली (अ.) पूरी तरह से पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के संरक्षण में आ गये। हज़रत अली (अ.) हमेशा पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के साथ रहते थे। जब पैग़म्बरे इस्लाम मक्का ळशहर से बाहर निकल कर पहाड़ों पर जाते थे तो वहाँ भी अपने साथ हज़रत अली (अ.) को ले जाते थे। पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की बेसत और हज़रत अली (अ.) अच्छे और नेक कामों के लिए सबसे पहले, आगे क़दम बढ़ाना एकत फ़ज़ीलत (श्रेष्ठता) है । अल्लाह ने क़ुरआने करीम की बहुत सी आयतों में अपने बन्दों को नेक काम करने के लिए एक दूसरे से आगे निकलने का पैग़ाम दिया है। हज़रत अली (अ.) की एक फ़ज़ीलत यह है कि वह पैग़म्बरे इस्लाम पर ईमान लाने वाले सबसे पहले इंसान हैं। इस बारे में अबिल हदीद लिखते हैं कि “मोतेज़ला फ़्रिक़े के उलमा व मुतकल्लिम इस बात पर एक मत हैं कि हज़रत अली (अ.) पैग़म्बरे इसलाम (स.) पर सबसे पहले ईमान लाये और उनका अनुमोदन किया।” हज़रत अली (अ.) पैग़म्बर (स.) के सर्व प्रथम सहयोगी के रूप में हज़रत मुहम्मद (स.) की पैग़म्बरी की घोषणा, पहली वही के नाज़िल होने और तीन साल की इस्लाम की अप्रत्यक्ष तबलीग़ के बाद पैग़म्बरे इस्लाम पर वही नाज़िल हुई और उन्हे प्रत्यक्ष रूप से इस्लाम के प्रचार का हुक्म दिया गया। इस दौरान पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के इस्लाम प्रचार में मुख्य भूमिका निभाने वाले हज़रत अली (अ.) थे। जब पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने अल्लाह के हुक्म से अपने सम्बन्धियों को इस्लाम की ओर बुलाने का निमन्त्रण दिया और उनको रात्री भोज पर बुलाया तो उस समय केवल हज़रत अली (अ.) ही आपके एक मात्र सहयोगी थे। इस दावत में पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने समस्त लोगों से सवाल किया कि तुम में से कौन है जो इस कार्य में मेरा साथ दे? ताकि वह तुम में मेरा भाई, मेरा जानशीन (उत्तराधिकारी) हो। इस सवाल के जवाब में केवल हज़रत अली (अ.) ने कहा कि ऐ अल्लाह के रसूल इस काम में मैं आपका साथ दूँगा। पैग़म्बर (स.) ने यह सवाल सब से तीन बार किया परन्तु तीनो बार केवल हज़रत अली (अ.) ने सहायता का वचन दिया। इसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने कहा कि ऐ ख़ान्दान वालों जान लो कि यह अली मेरा भाई और मेरे बाद तुम्हारे बीच मेरा जानशीन है।हज़रत अली (अ.) की एक फ़ज़ीलत यह है कि हिजरत की रात आपने बहादुरी के साथ पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के बिस्तर पर लेट कर मुशरिकों की पैग़म्बर(स.) को क़त्ल करने की साज़िश को नाकाम बनाया और अपने इस कार्य से पैग़म्बर (स.) की हिजरत के मार्ग को खोला। हज़रत अली (अ.) हिजरत के बाद पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के मदीने हिजरत कर जाने के बाद हज़रत अली (अ.) ने जो कारनामे अंजाम दिये हम यहाँ पर उनमें से केवल दो कारनामों का वर्णन कर रहे हैं। 1. जंग के मैदान में बहादुरी व क़ुरबानी हज़रत अली (अ.) ने इस्लाम की 27 जंगों में से 26 में हिस्सा लिया और बहुत से सरियों में भी भाग लिया यह आपकी बहुत बड़ी फज़ीलत है।2. क़ुरआन की वही को लिखना और उसे व्यवस्थित करना क़ुरआन की वही, सियासी समझोतों और इस्लाम प्रचार के लिए खतो आदि का लिखना हज़रत अली अलैहिस्सलाम के बहुत अहम कामों में से एक है। हज़रत अली (अ.) क़ुरआन की समस्त आयतों को चाहे वह मक्की हों या मदनी लिखते थे और उन्हें व्यवस्थित करते थे। इसी लिए आपको कातिबाने वही और हाफ़िज़ाने क़ुरआन में शुमार किया जाता है। जब पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने मुसलमानों के बीच भाई बन्दी के रिश्ते की नीव डाली तो हज़रत अली (अ.) को अपना भाई बनाया और उनसे फ़रमाया कि “ ऐ अली आप दुनिया और आख़ेरत में मेरे भाई हो, उस अल्लाह की क़सम जिसने मुझे हक़ के साथ नबी बनाया है, मैं आपको अपने भाई के रूप में चुनता हूं, भाई का ऐसा रिश्ता जो दोनों जहान में बाक़ी रहे।” हज़रत अली (अ.) पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के दामाद के रूप में उमर व अबूबकर औस नामक क़बीले के सरदार सअद पुत्र मआज़ से मशवरा करने के बाद इस नतीजे पर पहुँचे कि अली के अलावा कोई दूसरा इंसान हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.) के साथ शादी करने के योग्य नही है। अतः जब हज़रत अली (अ.) पैगम्बर (स.) के किसी एक नासिर के बाग़में सिचाईं कर रहे थे उस समय उन्होंने इस विषय पर बात चीत की तो आपने फ़रमाया कि मैं भी पैग़म्बर (स.) की बेटी से शादी का उम्मीदवार हूँ, यह कह कर पैग़म्बर (स.) के घर की तरफ़ चल दिये। जब पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की ख़िदमत में पहुंचे तो पैग़म्बर (स.) की हैबत की वजह से कुछ कह न सक। जब पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने हज़रत अली (अ.) से पूछा किस लिए आये हो तो आपने अपने तक़वे और इस्लाम के लिए दिये गये कारनामों के आधार पर अर्ज़ किया कि “क्या आप फ़ातिमा की शादी मेरे साथ करना उचित समझते हैं ? ” पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने हज़रत फ़ातिमा ज़हरा (स.) से इस बारे में बात की और जब उनको राज़ी पाया तो दोनों की शादी कर दी गई। ग़दीरे ख़ुम पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने अपनी ज़िन्दगी के आख़री साल में हज्ज के वज़ीफ़े को अन्जाम दिया और जब हज्ज करके मक्के से मदीने लोट रहे थे तो जोहफ़े के पास ग़दीरे ख़ुम नामक जगह पर हाजियों को रुकने का हुक्म दिया। क़ाफ़िले को रोकने की वजह यह थी कि अल्लाह का फ़रिश्ता यह वही लेकर आया था कि ऐ पैग़म्बर आप अपनी रिसालत को आख़री हद तक पहुँचा दीजिये। पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने वहाँ रुक कर ज़ोह्र की नमाज़ पढ़ी और नमाज़ के बाद ऊँटों के कजावों से बने मिम्बर पर खड़े हो कर एक ख़ुत्बा दिया जडिसमें फ़रमाया कि “ऐ लोगो! वह वक़्त नज़दीक है कि मैं अल्लाह की दावत पर लब्बैक कहते हुए तुम्हारे बीच से उठ जाऊँ। तुम लोगों की मेरे बारे में क्या राये है ? ” लोगों ने कहा कि हम गवाही देते हैं कि आपने अल्लाह के दीन व क़ानून की बहुत अच्छी तबलीग़ की है। पैगम्बरे इस्लाम (स.) ने फरमाया कि “ क्या तुम गवाही देते हो कि अल्लाह के अलावा कोई दूसरा माबूद नही है और मुहम्मद उसका बन्दा और रसूल है ?” इसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने हज़रत अली (अ.) का हाथ पकड़ कर उनको ऊपर उठाया और फ़रमाया “ऐ लोगों मोमेनीन पर ख़ुद उनसे बेहतर कौन है?”लोगों ने जवाब दिया कि अल्लाह और उनका रसूल ज़्यादा जानते हैं। इसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने फ़रमाया “ ऐ लोगों जिस जिस का मैं मौला व रहबर हूँ, उसके यह अली मौला और रहबर हैं। ” पैग़म्बरे इस्लाम (स.) ने इस जुमले को तीन बार दोहराया। इसके बाद लोगों ने हज़रत अली (अ.) को इस मनसब पर चुने जाने की मुबारकबाद दी और उनके हाथ पर बैअत की।हज़रत अली (अ.) पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के बाद पैग़म्बरे इस्लाम (स.) की वफ़ात के बाद जो स्थिति उत्पन्न हुई उसमे हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने लोगों से अलग थलग रहते हुए चुप रहना ही सही समझा। अतः न वह जिहाद में हिस्सा लेते थे और न लोगों के बीच तक़रीर करते थे। उन्होंने अपनी तलवार को न्याम में रख लिया था। वह केवल अपने दीन के फ़राइज़ को पूरा करते हुए लोगों की तरबीयत के काम करते थे। उस दौरान हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने जो काम किये इनका सार यह है। 1. अल्लाह की इबादत 2. क़ुरआन की तफ़्सीर, दीन के मसाइल का हल और उन नये मसाइल को हल करना जो पैग़म्बरे इस्लाम (स.) के ज़माने में नही थे। 3. विभिन्न क़ौमों व शहरों से आने वाले बुद्धीजीवियों के सवालों के जवाब देना। 4. उन चीज़ों का हुक्म बयान करना जिनका इस्लाम में पहले कोई हुक्म न हो। 5. उन सियासी मसलों को हल करना, जिनके हल में ख़िलाफ़त पक्ष असमर्थ हो जाता था। 6. ऐसे लोगों की तरबीयत करना जिनका ज़मीर पाक साफ़ था और जिनकी रूह इलाही व इरफ़ानी सफ़र को तैय करने के लिए तैयार थी।7. बहुत से ग़रीब लोगों की ज़िन्दगी की ज़रूरतों के पूरा करना। मसलन हज़रत अली अलैहिस्सलाम बहुत से बाग़ लगाते कुवें खोदते और उन्हें अल्लाह के नाम पर ग़रीबों के लिए वक़्व कर देते।हज़रत अली अलैहिस्सलाम की ख़िलाफ़तहज़रत अली अलैहिस्सलाम की ख़िलाफ़त के दौरान बहुत सी जंगे हुईं जैसे जमल, सिफ़्फ़ीन, नहरवान आदि। इनमें से हर जंग का भंयकर परिमाम सामने आया। हज़रत अली अलैहिस्सलाम की शहादत नहरवान की जंग और ख़वारिज की बग़ावत के कुचले जाने बाद, ख़वारिज में से कुछ लोग जैसे अब्दुर्रहमान पुत्र मुलजिम मुरादी, मुबरक पुत्र अब्दुल्लाह तमीमी और उमर पुत्र बकर तमीमी रात को एक जगह इकठ्ठा हुए और उन्होंने उस समय के हालत, जंग व मार काट के बारे में बात की। उन्होंने नहरवान में मारे गये अपने साथियों को याद किया और वह इस नतीजे पर पहुँचे कि इस मार काट का कारण हज़रत अली अलैहिस्सलाम, मुआविया और अम्रे आस है। अगर इन तीनों को क़त्ल कर दिया जाये तो बाक़ी मुसलमान अपने मसलों को ख़ुद हल कर लेंगे। अतः उन्होंने आपस में यह तैय किया कि हम में से हर एक उनमें से एक एक इंसान को क़त्ल करेगा। अब्दुर्रहमान पुत्र मुलजिम ने हज़रत अली अलैहिस्सलाम को क़त्ल करने का अहद किया और उन्नीसवीं रमज़ानुल मुबारक की रात को अपने कुछ साथियों सहित मस्जिद में आकर बैठ गया। उस रात हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपनी बेटी के मेहमान थे और सुबह को होने वाले वाक़िये से बा ख़बर थे। जब आपने इस बारे में अपनी बेटी को बताया तो उनकी बेटी उम्मे कुलसूम ने कहा कि आप सुबह को मस्जिद में जोदा के भेज दीजिये ।हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने जवाब दिया कि अल्लाह के फ़ैसलों से नही बचा जा सकता। यह कह कर आपने अपनी कमर के पटके को कस कर बाँधा और एक शेर पढ़ते हुए घर से मस्जिद की तरफ़ चले। उस शेर का मतलब यह है कि अपनी कमर को मौत के लिए कस कर बाँध लो, क्योंकि मौत तुमसे मुलाक़ात करेगी। और जब मौत तुम्हारी तलाश में आये तो उससे डर कर रोओ नही। हज़रत अली अलैहिस्सलाम नमाज़ के सजदे में थे कि इब्ने मुलजिम ने आपके सिर पर तलवार से हमला कियाजिससे आपकी दाढ़ी और मेहराब ख़ून से भर गये। इस हालत में हज़रत अली अलैहिस्सलाम ने फ़रमाया فزت و رب الکعبہ अर्थात काबे के रब की क़सम मैं कामयाब हो गया। इसके बाद सूरः ए ताहा की इस आयत की तिलावत की “हमने तुमको मिट्टी से पैदा किया है और उसे मिट्टी में वापस पलटा देंगे और फिर उसी मिट्टी से तुम्हें दोबारा बाहर निकालेंगे।” हज़रत अली अलैहिस्सलाम अपनी ज़िन्दगी के आख़िरी क्षमों में भी लोगों की इस्लाह व नेकी की फ़िक्र में थे। उन्होंने अपने बेटों, सम्बन्धियों और समस्त मुसलमानों को यह वसीयत की कि “मैं तुमको परहेज़गारी की वसीयत करता हूँ, मैं तुमको यह भी वसीयत करता हूँ कि तुम अपने तमाम कामों को व्यवस्थित करो और हमेशा मुसलमानों की इस्लाह की फ़िक्र करते रहो। यतीमों का ध्यान रखो व पड़ौसियों के हक़ की रिआयत करो। अपने इल्म का आधार कुरआने करीम को बनाओ. नमाज़ की क़द्र करो कि यह तुम्हारे दीन का सतून है।” हज़रत अली अलैहिस्सलाम 21 रमज़ानुल मुबारक को कूफ़े में शहीद हुए और आपको नजफ़े अशरफ़ में दफ़्न किया गया। आप का रौज़ा आज भी हक व हक़ीक़त पसंद लोगों के इश्क का केन्द्र है।

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