Thursday, January 17, 2008

क़ुरआन और विज्ञान

प्यारे दोस्तों इस में कोई शक नही कि क़ुरआने करीम में विज्ञान की ओर संकेत किये गये है।क़ुरआने करीम में सैकड़ों स्थान पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप में विज्ञान की ओर इशारे मिलते हैं। लेकिन हमें यह ज्ञात होना चाहिए कि क़ुरआने करीम मार्ग दर्शन और प्रशिक्षण की एक पूर्ण किताब है। इस मतलब को समझाने के लिए बहुत से तरीक़े अपनायें जा सतके हैं। और इन ही तरीक़ों मे से एक यह है कि लोगों का ध्यान चिंतन की ओर केन्द्रित किया जाये। और यह आयात इसी लिए नाज़िल हुईं हैं कि हम अल्लाह की महानता और उसकी शक्ति से अवगत हो सकें। लेकिन कुछ लोगों का विचार है कि क़ुरआने करीम मे विज्ञान के इशारे ही बहस का केन्द्र बिन्दु हैं और यह केवल एक विज्ञान की किताब है। मार्ग दर्शन से इसका कोई सम्बन्ध नही है। यह विचार धारा ग़लत है। इस विचार धारा से सम्बन्धित लोगों को यह ज्ञात होना चाहिए कि क़ुरआने करीम मे यह बहस केवल विशेष उद्देशय के अन्तर्गत सम्मिलित की गयी है। वास्तविकता यह है कि क़ुरआने करीम मार्ग दर्शन की ही किताब है।अतः हर वह चीज़ जो इंसान के मार्ग दर्शन और प्रशिक्षण के लिए आवश्यक है उसका वर्णन भी आवश्यक है। क़रआने करीम में इल्म (ज्ञान) की अहमियतइल्म और वह शब्द जिनसे इल्म की ओर संकेत होता हैं क़ुऱआने करीम में 750 स्थानों पर प्रयोग हुए हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि क़ुराने करीम में इल्म और आलिम(ज्ञान और ज्ञानी) को अत्यधिक महत्व दिया गया है। क्योंकि यह इल्म (ज्ञान) ही है जो इंसान को अज्ञानता के अन्धाकार से बाहर निकालता है और मानवता का पराकाष्ठता की ओर मार्ग दर्शन करता है। ज्ञान के द्वारा ही इंसान क़ुरआन के आश्य और नबियों की शिक्षाओं से परिचित होता है।और ज्ञान के आधार पर ही इंसान नित नये अविश्कार करता है।इसी कारण इस्लाम धर्म में ज्ञान प्राप्ति को अनिवार्य किया गया है।परन्तु क़ुरआने करीम में इल्म(ज्ञान) से अभिप्राय कोई विशेष इल्म(ज्ञान) नही है। अपितु इस्लाम में इल्म का अर्थ आम मअना में लिया जाता है। अर्थात प्रत्येक वह इल्म जो इंसान को सफलता की ओर ले जाये। और इस्लामी शरियत के अन्तर्गत वह हराम न समझा जाता हो।यहाँ पर हम क़ुरआने करीम की इल्म(ज्ञान) से सम्बन्धित आयात का सक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कर रहे हैं। जो निम्ण लिखित भागों मे विभाजित हैं।अ- वह आयतें जो पूर्ण रूप से ज्ञान के संदर्भ में है और जिन में ज्ञान और ज्ञानी की महानता को व्यक्त किया गया है। जैसे---1- सूरए ज़ुम्र की आयत न. 9 में वर्णन किया गया है कि क्या ज्ञानी लोग अज्ञानी लोगों के बरा बर हो सकते हैं ? इस बात से केवल बुद्धिमान लोग ही सदुपदेश प्राप्त करते हैं। 2- सूरए मुजादिला की आयत न.11 में कहा गया कि अल्लाह उन लोगों के दर्जों को बलन्द करता है जिन्होंने ईमान को स्वीकार किया और जिनको इल्म दिया गया।ब- वह आयतें जो इल्म में वृद्धि के मार्ग का वर्णन करती हैं। आँख, कान, बुद्धि और दिल की ओर इशारा करते हुए इंसान को इनसे लाभान्वित होने के लिए उत्तेजित करती हैं। ताकि वह ज्ञान को व्यापकता प्रदान कर सकें व इसको नेअमत समझें। जैसे –1- सूरए नहल की आयत न. 78 में वर्णन हुआ है कि अल्लाह ने तुम को माँ के पेट से इस तरह निकाला कि तुम कुछ न जानते थे और इसी लिए तुमको कान आँख और दिल प्रदान किये शायद तुम शुक्र गुज़ार बन सको। स- वह आयतें जिन में संसार की रचना और अल्लाह की निशानियोँ में चिंतन का निमन्त्रण दिया गया है। इन आयतों में उन लोगों की भर्त्सना भी की गयी है जो चिंतन नही करते। जैसे—1- सूरए आलि इमरान की आयत न. 191 में वर्णन हुआ है कि वह लोग पृथ्वी व आकाश की रचना में चिंतन करते हैं।2- सूरए क़ाफ़की आयत न. 6 में उल्लेख है कि क्या उन्होंने अपने ऊपर आकाश की ओर नही देखा कि हमने उसको किस प्रकार बनाया और किस प्रकार सुसज्जित किया।3- सूरए बक़रा की आयत न. 171 में वर्णन मिलता है कि यह (काफ़िर) बहरे गूँगे और अंधे हैं यह लोग बुद्धि से काम नही लेते। द- वह आयतें जो क़ुदरत के मर्म को व्यक्त करती हैं जैसे—1- सूरए शोराअ की आयत न.7 में उल्लेख किया गया है कि क्या इन लोगों ने पृथ्वी की ओर नही देखा कि हमने किस तरह अच्छी अच्छी चीज़े ऊगाई हैं। इस आयत में अल्लाह ने वनस्पति के जोड़ों की ओर संकेत किया है और यह बात अब हज़ारों वर्षो के बाद वनस्पति विज्ञान के विशेषज्ञयों को ज्ञात हुई।2-सूरए यासीन की आयत न. 38-39-40 में वर्णन हुआ है कि सूर्य अपनी धुरी पर घूम रहा है और यह अज़ीज़ और अलीम अल्लाह की निश्चित की हुई गति है। और हमने चन्द्रमा के लिए भी विभिन्न स्थितियाँ निश्चित की हैं यहाँ तक कि वह अन्त में खजूर की सूखी हुई शाखा के समान हो जाता है। न यह सूर्य के वश मे है कि चन्द्रमा को पकड़े और न रात के वश में है कि वह दिन से आगे बढ़ जाये और यह सब अपनी अपनी सीमा मे घूमते रहते हैं।प्यारे दोस्तों जब पूरे संसार में खगोल शास्त्र में बतलीमूस का दृष्टिकोण प्रचलित था( बतलीमूस का दृष्टिकोम यह था कि सूर्य पृथ्वी के चारो ओर घूमता है।) उस समय क़ुरआन ने सूरज के अपनी धुरी पर घूमने के सम्बन्ध में अवगत कराया था।(न कि पृथ्वी के चारो ओर) परन्तु आज के आधुनिक वैज्ञानिकों ने यन्त्रों की सहायता क़ुरआन की इस बात को सिद्ध किया है।यह आयत उस बड़े ग्रह के गति मय होने की घोषणा कर रही है जिसको बहुतसे ज्ञानी सैकड़ों वर्षों से गतिहीन मान रहे थे। यह तजरी (गति) शब्द मानव के ज्ञान में वृद्धि करा रहा है।हर युग में खगोल शास्त्रीयों ने इन आयतों की नयी नयी तफ़्सीरें की हैं और जैसे जैसे खगोल शास्त्र विकसित होता जा रहा है इन आयतों के अर्थ प्रत्यक्ष होते जा रहे हैं।

2 comments:

yunis said...

Nice Job done by u
Keep trying

Bahaar Bareilvi said...

thanks dost