
इस्लामी चार बिषय1- ख़ुम्स, प्रत्येक व्यक्ति व प्रत्येक मुसल्मान पर फ़र्ज़ है. कि सही प्रकार से अपने परिवर को सठिक पद्धति के साथ चलाने के बाद साल भर में जो पैसा बच जाएं। उस से ख़ुम्स दिया जाएगा और यह पैसा उस समय या ज़माने के जो मर्जे धर्मानुसार व्यक्ति होगें उस के हाथ में दिया जाए या उस के प्रतिनिधी के हाथ में, उसी तरह 20 दर सद मादान, जो माल डूब लगाने के मध्यम इंसान अर्जन करता है। गंन्ज सर्वत जो माल हलाल व हराम में मिस्सृत हो जाएं। यूद्ध के माल और विशेष ज़मीन वगैरह के बारे में चीज़ कि तफ़सील मासाएलों कि ग्रन्थों में बयान किया गया है।2- ज़कातः मात्र विशेष विशेष चीजों पर फ़र्ज़ है, चीज़ कि इबारत है। जौब, गंदुम, ख़ुर्मा, किश्मिश, सूना, चांदि, ऊट, गाई, बक़री, गोस्फ़न्द, इन सबों पर ज़कात उस समय फ़र्ज़ होगा जब इस चीजों कि मिक़दार किलों के हिसाब से 847 होगा वह भी इस शर्त के साथ कि अगर पानी के मध्यम छिचाई कि है तो 5 भाग, और अगर बर्षा के द्बारा हूआ है तो %10 भाग, और अगर हर दो ब्याबाहर हूआ है तो % 7/5. भाग, सूना और चादिं 15 मिस्क़ाल, उस समय जब उज़न के हिसाब से 105 मिस्क़ाल समस्त कि समस्त शराएत के साथ % 2/5 । ऊट, गाई, गोस्फ़न्द उस समय फ़र्ज़ होगा जब उस का हद्दे निसाब व समस्त प्रकार का शर्त परिपूर्ण हो जाए।3- ख़राजः वह ज़मीन जो मुस्लमान कूफ़्फार से यूद्ध के मध्यम अर्जन किया है, इस्लामी दौलत किसानी जनता से उस समय ख़राज ले सक्ती है. जब उस से कुछ महसूल हो, तब भी इस शराएत के साथ कि हाकिम धर्मानुसार व किसानी के रिज़ाएत हो, उस समय ख़राज अर्जन कर सक्ती है।4- जिज़याहः यानि जो लोग अक़लियत सम्प्रदाय के हो और इस्लामी हुकुमत में प्रत्येक प्रकार कि शान्ती के साथ ज़िन्दगी बसर कर रहे हो. ऊन जनता से दौलत कोई चीज़ अर्जन कर नहीं सक्ती, हत्ता ख़ूम्स, ज़ाकात भी ऊन जनता से लिया नहीं जाए गा।इस्लामी दौलत इन चार चीजों के व्यतीत कोई चीज़ किसी से ले नहीं सकती।
इस्लाम में बैतूल माल
इस कथा पर ध्यान देना बहुत ज़रुरी है, वेह यह है कि ग़रीब, यतीम, फ़कीरों को सहायता करने के लिए एक मर्कज़ बनाया है चीज़ का नाम इस्लाम में (बैतूल माल) रखा गया है। यह इस लिए है कि समाज में जो व्यक्ति अपने काम से दूर है जैसे बिमारी, मलूल, बिसर्प्रस्त, यतिम.....वगैरह उपस्थित हुँ इस माल से ऊन जनता को सहायता कि जाए ( ताकि वह लोग सठिक पद्धति से ज़िन्दगी बसर करें) बैतूल माल मूआज़्ज़फ है कि ऊन जनता को पर्वरिश करे. इस के व्यतीत बैतूल माल का और दुसरी दायित्व भी है, समाज में विभीन्न प्रकार के काम-काज को अंजाम देना, ज़माने के साथ साथ समाज कि उन्नती करना, विभिन्न प्रकार काज-कामों में सहायता करना. ताकि एक मुनासिब समाज क़ायम करने में विशेष करके किसानों को सहायता करना। ताकि वह सब विभिन्न प्रकार के कामों से बिनियाज़ रहे. और अपरों के निकट सहायता के लिए हाथ ना बाढ़ायें, इन सबों का दायित्व ऊन लोगों पर है जो बैतूल माल का दायित्व लिए हूये हैं। उसी तरह जनता व समाज के लिए काम करना, इस्लाम कि तबलीग़, ताकि इस्लाम के समस्त क़ावानीन संरक्षण रहे. परिष्कार परिच्छन्न के लिए काम करना, और समस्त प्रकार काम करना जो परिष्कार व बाहदा्श्त के सम्पर्क से हो. इक़्तेसादी, समाज में एक एक व्यक्ति का नियाज़ को दूर करना, बिवाह, सर्माया, तिजारत, गृह, दवा, ग़रीबों को भ्रमण के लिए पैसा देना, चीज़ का गृह नहीं उस के लिए गृह बनाना, ज्ञान अर्जन करने के लिए सहायता करना, यह सब कामों के लिए मात्र बैतूल माल का दायित्व ग्रहन करने वालों का काम है। जो व्यक्ति ग़रीब है वह सिधा बैतूल माल से सहायता लेके अपना नियाज़ को दूर कर सकते है, और बैतूल माल व दुसरे पैसा यह सब इस्लामी दौलत के खज़ाने से है, संभब है कि कोई व्यक्ति यह कहे कि बैतूल माल का पैसा यह समस्त प्रकार का खर्च काफ़ि नहीं है, उसका उत्तर इमाम जाफ़र सादिक़ (अ0) के फरमान से मिलेगा, फरमायाः आगर इस से काफ़ि नहीं है तो ख़ुदा वन्दे मुताल इस से अधिक माल प्रदान करता))दुसरी तरफ़ इस्लामी राष्ट्र में कम लोग व जनता ख़िदमत करते है और बहुत सारी अफ़िस और इदारे में तशरीफाति में बेशि बढ़ गई जो दौलत कि किसी काम में नहीं है, और ना किसी सामाजिक के लिए लाभ है। बल्कि इस से इस्लाम कि आज़ादी हन्य कर रहा है और विबेक भी यही कह रही है, इस्लामी राष्ट्र में बहुत सारे निषेध हिफ्ज़ हो गया और अधिक से अधिक लोग कामों में आज़ादी तौर पर सर्मया गुज़ारी करने लगा और जनता कि ख़िदमत वगैरह अंजाम दे रहा है। नतीजे में राष्ट्र और दौलती को बहुत सारे ख़र्च कम हो गये, और दौलत में माल बेशि होने लगे, और विशेष विशेष बाकं इस्लामी आह्काम के साथ इदारे होना चाहीए । इस से समाज कि लाभ कामों में लगाना संमभ है, और इस्लामी बाकं में किसी प्रकार कि सुद व लाभ उपस्थित नहीं है, खूलाछे के तौर समस्त प्रकार कि बाकों में चेक दिया जाए चीज़ से कोई लाभ नहीं लिया जाए।एक मात्र लाभ शरियत के दृष्ट से मूज़ारेबा हक़ीकी, ना बाकं व बाजारगानी के साथ, किसानी, तिजारतकारी, सर्मयाकारी, वगैरह में अगर पैसा कि कम हो जाए यह सब पैसा बैतुल माल से दिया जाए गा।

इस्लाम-धर्म में पूलिस व निज़ामी एक ऐसा उत्तम क़ानून बयान किया है। कि इस्लाम-धर्म में पूलिस और सर्बाज़ी करना इस चीज़ को अपने अपने दायित्व व अधिकार में क़रार दिया है। इस प्रकार के निर्देश में किसी प्रकार का ज़ोर निर्देश नहीं है। ( कि प्रत्येक व्यक्ति पूलिस का काम अंजाम दें). लेकिन यूग के शरायेत के साथ अगर शोरहा-ए- फक़ही इस निर्देश को ताईद व तौसिक़ क़रार दें। इस मौलिक़ विधान के अनुसार दौलत को अधिकार है कि अपने शहर के बाहर समस्त प्रकार हतियारों के संस्था बनाएं और जनता को ख़ाली समय में लोगों को शिक्षा प्रदान करे, उधारणः गुरुवार, और बिना हिसां और बुग्ज़ के लोगों को अमंत्रण देकर विभिन्न प्रकार के शिक्षा-ज्ञान का तालीम और आत्वा रक्षा के लिए शिक्षा प्रदान करें वेह भी बहुत सरल व आसान के साथ होनी चाहिए।इस हिसाब से अगर देखा जाए तो दौलत को बहुत सारे पैसा बच जाएगा। दुसरे तरफ अगर ऐसा नही तो बहुत सारे जनता और समस्त प्रकार क़ौम को हक़ीक़त में अपने पिता-माता और भाई-भ्रता से बिरत रखा है, और समस्त प्रकार के कामों से या समाज के समस्त चीजों से जो चीज़ जवानान को समाज में जरुरत है उस से दूर रखा है।इस्लाम समस्त प्रकार के यूद्ध के वसाएल और इस्लाम व मुस्लमान भ्रता को रक्षा करने के लिए ज़रुरी और अवशक मानता है. इस सम्पर्क इर्शाद फरमाते हैः (( अपने को अपने संरक्षण के लिए विरुद्ध दुश्मानों के साथ जो शक्ति रखते हो उस शक्ति को अर्जन करों)) हलाकिं अगर सही दृष्ट से देखा जाए तो इस्लाम सोल्ह व अराम को दोस्त रखता है, यूद्ध के बिपरीत. पवित्र क़ुरआन इस सम्पर्क इर्शाद फरमाता है (( जो व्यक्ति ईमान लाए वेह सोल्ह और शान्ति में प्रबेश करें)) इस्लाम किसी प्रकार के दुश्मनी को पसन्द नहीं करता और तमाम प्रकार शक्तियों के साथ राष्ट्र के अंदर व बाहर शान्ति के लिए सहायता करता है। और कोई भी इस्लामी राष्ट्र या दौलत के साथ शान्ति के लिए संधि करे उस के लिए इस्लाम अपना दामन फैला देता है)) उधारण के तौर परः अगर कभी इस्लामी राष्ट्र शान्ति चूक्ति करने के लिए इच्छा प्रकाश करे तो उस शान्ति चूक्ति को क़बूल कर लेना चाहिए)) इस्लाम सोल्ह व शान्ति को पृथ्वी के सामने एक पुरुष्कार के तौर पर पेश किया है।
समाज की ख़राबी
इस्लामी समाज, क़ौम के लिए शान्ति चाहता है. और प्रत्येक प्रकार के इंसानों के लिए विजय के लिए फ़िक्र करता है, इस्लाम साधारण फ़िक्र नहीं करता बल्कि तमाम प्रकार कि दुष्चिन्ता और अपराध को दुरी करने के लिए फ़िक्र करता है, और समस्त प्रकार के पलीद, भूक, प्यास, निर्क्षर, असमाजिक, और हराम यौन को दूर करना, बुग्ज़ हसद, दुश्मनी, और रुही समस्या को दूर करने के लिए भी फ़िक्र करता है।और इन सब कारण का कारण किया है। इन सबों को दूर करने के बाद साधारण जनता के लिए सही पथ प्रदर्शन करना और ऊनकि बिजई के लिए साआदत और परित्राण के रास्ता खोज करता है। और इस के साथ साथ चुरी और समस्त प्रकार कि अपराधों से निषेध घोषित किया है. उधारणः शराब पिना वगैरह..... और जनता के बासस्थल के चारों तरफ एक ऐसी संस्था क़ायम करता है जहाँ जवानान खेल-कुद कर सकें और तमाम अपराधों से संरक्षण कर सकें. इन चीजों को संरक्षण करता चीज़ के मध्यम एक समाज और मुआशिरा सही व सालीम रहें और सही पद्धति से जीवन बसर कर सकें, उस चीज़ कि तरफ़ अग्रसर व शौक़ दिलाते है, और जवानानों को सही पद्धति से ज्ञान-शिक्षा विशेष करके पूत्र-पूत्रि और वह तमाम दर्सें चीज़ से पाक दामन व सदाचारण, हिजाब. विशेष करके जवान पूत्रि को वि-हिजाब और फ़ाहेशा कर्मों से निशेध करता है। ताकि एक पवित्र पाक दामन के मध्यम एक समाज को समस्त प्रकार कि अपराध से परित्राण दिलाकर एक स्वर्ग प्रदान करे। और जवान को सही पद्धति से निर्दशन करके एक बिजयी कि तरफ़ अग्रसर करे. उस कि फ़िक्रयों को दूर करता है और साधारण जनता के रुही समस्या को उठा लेता है।समाज को पस्त ज़िन्दगी व अपराध ज़िन्दगी से परित्राण देलाकर एक साआदत ज़िन्दगी कि तरफ़ अग्रसर कराता है। इस से अपने इस्लाम विरुद्ध के बूग्ज़ व हस्द, और प्रतिशोध जूई को दर्रहम करता है. और इन तमाम प्रकार के अपराधों को दूर करके अपनी स्थान में एक ऐसे सालेह नेक व सदाचरण क़ानून तैयार करता है चीज़ क़ानून का नाम (आफु)) अर्थात, क्षमा करने वाला नाम का ऊपाधी दिया गया है।इस्लाम समाज कि तमाम प्रकार अपराधों और समस्या को बैतुल माल द्बारा रहित करता, अल्बत्ते अतीत इतिहास प्रमाण देता है कि चार कर्न के एक लम्बा समय तक इस्लाम इस्लामी देशों में परीवर्तण हत्ता तमाम विश्व को अपने इख़्तियार में लिया था और छे व्यक्ति से बेशि धर्मानुसार के मूताबिक़ अपराध क़रार नहीं पया था।दितीय तरफ़ इस्लाम का एक इम्तियाज़ यह भी है. कि इस्लाम तमाम प्रकार अपराधों को तुरतं न्याबिचार करता है यही कारण है कि इस्लामी देशों में प्रत्येक पकार के अपराध उपस्थित नहीं है।और जो कुछ है इस यूग में वेह धर्म के दृष्ट में कोई बिचार नहीं हे बल्कि अ-बिचार है. इस मौलिक विधान के मुताबिक इस्लामी देशों में कोई क़ैदख़ाना कि ज़रुरत भी नहीं. और न पृथ्वी में क़ैद खाना कि ज़रुरत है। बल्कि शरियते इस्लाम में जो अपराध अर्जन हो वेह अपराध शरियत के दृष्ट और तमाम फुकहा के विशेष निर्देश से फौरान समाप्त होनी चाहिए। अल्बत्ते बहुत सारी गल्तियाँ उपस्थित है चीज़ के लिए शरियत ने क़ैद का निर्दष्ट किया है, उधारणः अमीर लोगं तल्ब कारों के तल्ब से बिपर्वा करता हो तो इस प्रकार के व्यक्तियों को इस्लाम ने क़ैद का निर्देश प्रदान किया है।
न्याय बिचार मगंना
इस्लाम ने उत्तम से उत्तम बिचार पद्धति मुस्लमानों की ख़िदमत में प्रदान किया है, जो वगैर तशरीफाति और वगैर फाईल के साथ, अगर किसी व्यक़्ति के निकट कोई नालिश या शिकाएत हो. तो वह सिधा कोर्ट में प्रवेश करके अपनी शिकायत या नालिश करे ताकि बिना देरी के उस नालिश की चाँच पर्ताल किया जाएं। इस के लिए उचित है कि कोट के क़ाजी मर्द, मोमिन, आदिल, हो। और वगैर तशरीफाति व बैठक के व्यातीत उस की शिकायत को सठिक पर्ताल करें और दो आदिल प्रमाण के साथ उस की समस्या को समाधान करे। इस लिहाज़ से अगर देखा जाए तो उस समय जब इस्लामी हुकूमत थी मात्र एक व्यक्ति समस्त प्रकार कि समस्या को समाधान करता था, लेकिन आज के यूग जैसा वेह यूद नहीं था।
स्वाधीन
ईसलाम-धर्म समाज के लिए उत्तम से उत्तम स्वाधिन व हूर्रीयात कि एक पूरुष्कार व अर्मग़ान लाया है, जो ईस यूग के इंसान के समस्त प्रकार के अधिकार स्प्ना भी न देखा है। ईस से पहले ईस्लाम ने उसे बयान कर दिया है। और ईसलाम ने यह भी बयान कर दिया है कि समस्त क़ैदी ज़िन्दगी, गुलामी, ख़ूराफती से आज़ादी दि है। और इंसानों को विश्वास व फ़िक्र के मुताबीक़ बयान का ईख़तियार भी दिया है। लेकिन उस के लिए शर्त हैः कि समाज में जनता के लिए ख़राबी सृष्ट न हो. और अपना मेन उद्देश्व व अख़लाक़ व ईफ्फत पाकदामनी से पथ भ्रष्ट कि तरफ़ अग्रसर ता होता हो। ईस्लाम समस्त प्रकार सम्प्रदाय पैरुवान को हत्ता समस्त इंसानो को अज़ादी बयान का निर्देश दिया है. चीज़ में से,
आज़ादी तिजारत-व्यापार
ईस्लामिक समाज के प्रत्येक व्यक्ति को पूरी तरह अधिकार दि हैः कि वह अपना अपना भक्ति के मुताबिक़ काम-कार्य या कोई भी फ़न अर्जन करें। और अपनी अपनी मर्जी़के मुताबिक़ कोई भी चीज़ राष्ट्र के या बिराष्ट्र से अपने राष्ट्र में ले आएं। उस के लिए किसी प्रकार का निषेध का निर्देश नहीं है. लेकिन शर्त यह है कि कोई हराम चीज़ न हो और ईस्लाम के क़ानून की वि-परीत न हो। चुकि ईस्लाम हराम चीजों को ख़रीदना व बेचना निर्देश नहीं दी है. उधारण के तौर पर शराब बेचना, शराब की कम्पनी खोलना या बनाना व.... और उसी तरह लाभ लेना व देने की कोई अनुमती नही है। क्योंकि सुद लेना और देना इस से अपरों का अधिकार नष्ट होता है. और समाज में एक ख़राबी फैल जाती है चीज़ से समाज में एक ख़राब प्रभाब पढ़ता है।
आज़ादी के साथ ख़ेति-वाड़ी करना
प्रत्येक मुस्लमान को पूरी तरह अधिकार है कि वह अपनी अपनी भक्ति के मुताबिक़ पानी, सुर्य कि किरण, आफ़्ताब, ज़मीन व्यबाहर करे और अपना अपना नियाज़ व ज़रुरत के मुताविक़ चीज़ चीज़ कि ज़रुरत हो उस को अपनी अपनी ज़मीन में खेति करे।
من أحيى أرضاً ميتة فهي له
जो व्यक्ति मुर्दे हुए ज़मीन को जीवित व आबाद करे वह ज़मीन उसकी अधिकार में है। लेकिन उस आबादी व ईख़तियार के लिए शर्त है कि अपरों का अधिकार नष्ट न होता हो। और जो चीज़ समाज और इंसान के लिए नोक़छान देता हो उस की खेति न करें, इस लिए ईस्लाम में उसे ईसलाहाते अरज़ी क़रार दिया है. नाकि जो शर्क़ व गर्ब़ो देशों में चीज़ को तितीय विश्व का नाम क़रार दिया है।
आज़ादी ज़िन्दगी व आबादी
ईस्लाम में प्रत्येक व्यक्ति के लिए निर्देश है कि अपनी अपनी भक्ति की मुताविक़ जैसा चाहें ऐसा गृह, दुकान, कारख़ाना, मस्जिद, इमाम बाड़ा, मादरसा, असपताल व... बनायें। लेकिन उस के लिए शर्त है कि अपरों के अधिकार पर क़ब्ज़ा न हो। और यह सब कामों में इस्लाम का कोई दख़ल भी नहीं है। और न किसी इसलामी दौलत का अधिकार पहुँचता है कि वह सब कामों के लिए एक जुरमाना करे या उस पर हुकुमत करें।
आज़ादी व्यापार व उत्पत्ति
प्रत्येक मुस्लमान व्यक्ति के लिए आज़ादी है कि अपना भक्ति और विगैर शर्त के समाज के लिए किसी एक चीज़ जो समाज़ के लिए गुरुत्व है बनायें या ले आएं। लेकिन शर्त है कि हराम चीज़ न हो जैसा शराब बनाना और आलाते क़ुमार वगैरह.........।और उस तरह इंसान आज़ाद है कि अपनी भक्ति मुताविक़ काम-कार्य चेष्टा करेः जैसे शिकार करना, मछली पकड़ना, ज़मीन के नीचे से कोई चीज़ निकालना और वह चीज़ जो हलाल-शुद्ध है उस को अपने क़ब्ज़े में लाना इंसानों के अधिकारोंमे से है। उस में किसी दौलते ईस्लामी की कोई अधिकार नहीं पहुँचता कि उस काम के लिए कोई निषेध जारी करे या उस पर अपना क़ब्ज़ा बर्क़रार रखे।
आज़ादी के साथ बैठना व भ्रमण करना
जनसाधारण व्यक्ति को पूरीतरह अधिकार है कि वह आज़ादी के साथ अपना गृह, मकान निर्वचन करे, और अपनी अपनी ईच्छा के अनुसार अना-जाना व भ्रमण करें, अपनी ईच्छा के मुताविक़ किसी भी राष्ट्र में अपना भ्रमण करे उस का अधिकार पहुँचता है जैसा चाहे ऐसा भ्रमण करे। और इस जिच में न ज़बान, रगं, क़ौम, निज़ाद कि कै़द है, और न किसी प्रकार का ईम्तियाज़ की ज़रुरत है। और न पासफोर्ट कि ज़रुरत, और न किसी कार्ट कि ज़रुरत। जैसा कि यूरोप देशों में उपस्थित है इन समस्त प्रकार देशों में कार्ट कि कोई ज़रुरत नहीं पढ़ती है।
समाज में आज़ादी पद्धति के साथ राजनीति करना
इस्लाम-धर्म ने जो चीज़ निषेध घोषित किया है वेह बहुत कम है, और प्रत्येक प्रकार के काम, चाहे राजनिती- समाजी व इसलामिक.....वगैरह यह सब काम उस समय तक आज़ादी थी जब तक शरीय़त के मुताबिक था. और यह सब काम किसी प्रकार के दल और क़ौम के लिए विशेष व निर्दष्ट नहीं है। बल्कि प्रत्येक प्रकार के मुस्लमान इन समस्त प्रकार के काम अल्लाह के निर्देशनुसार इन कामों को सम्पादन कर सकता है। और इस आज़ादी बयान से सब आज़ादी का मज़ा का अनूभब भी कर सकता है।इस में किसी प्रकार के व्यक्तियों का दखल का अधिकार नहीं है। और इस कारण कि मौलिक बुनयाद पर इस्लाम-धर्म ने जासूसी को हराम घोषणा क़रार दिया है. और इस नाम से किसी प्रकार की अफिस भी उपस्थित नहीं है। चीज़ कारण से जनसाधारण या लोगों को कष्ट या समस्या का कारण बनें।अल बत्ते इस्लाम-धर्म ने दुश्मनों या अपने विरुद्ध के अपवित्र नीयत को जाँच पर्ताल करने के लिए जासूसी का काम को निर्देश प्रदान किया है। वह भी इस शर्त के साथ कि अपने राष्ट्र के सीमाना में हो , और यह काम जरुरी व अवशक भी है।उस के बाद धर्म ने आज़ादी तौर पर राजनिती करने का प्रत्येक व्यक्ति को निर्देश दिया है और वह इस्लाम के निर्देशनुसार. और आज़ादी के साथ एक दल व गिरोह, या तमाम प्रकार के सहायता जमा कर सकता है। और संबादपत्र, मजल्लाह, रादिउ, टेलीवीज़न वगैरह से भी लाभ अर्जन कर सकता है।उसी तरह दितीय विषय भी है जो मृत के सम्पर्क में है सब अपने अपने वारिस की लाश को किसी एक स्थान पर दफ़न कर सकता है इस में इस्लाम ने किसी प्रकार का निषेध प्रदान नहीं किया, और ना किसी के लिए राष्ट्र कि ज़रुरत है और ना एक शहर से अपर शहर के लिए देश कि ज़रुरत है........व गैरह इस अनुक्रम के साथ अगर दौलत इन समस्त प्रकार कामों में दखल ना करे तो दौलत और जनता भी इस से रक्षा संरक्षण रह सकता है और इन पैसा को अगर दौलत किसी के अधिकार में बेशि करे व ख़र्च करें उत्तम है, इस के बाद एक दौलत को चाहीए कि जनता के लिए समाज और शरीर को सही सलामत रखने के लिए फ़िक्र करें।
समाज
इस्लामी देशों कि बहुत बड़ी दायित्व है, कि इस्लामी समाज को बेशि से बेशि प्रचार करें ।और यह दायित्व निभाने के लिए प्रत्येक मुस्लमान का दायित्व बनता है कि वेह ज्ञान अर्जन करे, लेकिन इस्लामी समाज बनाने के लिए सब से बेशि दायित्व मुसलिम देशों पर है।यहाँ, साधारण तौर पर एक प्रश्न उठता है कि इस्लाम धर्म में ज्ञान अर्जन करने के लिए इतना ज़ोर क्यों दिया गया है१ और इतनी ताकीद होने के बावजूद तब भी मुस्लमान किस प्रकार दलील व प्रमाण के साथ पश्चिम देशों के हाथ में शिकार हो गये?अगर हम सब मुस्लमानों कि अतीत ईतिहास पर एक दृष्ट दें, तो इस प्रश्न का उत्तर अच्छी तरीके से परिष्कार हो जाये गा, कि मुस्लमानों को पश्चिम देशों का अनुसरण करना उस समय शुरु हूआ जब मुस्लमान इश्वर के निर्देश को भूल कर अपने को पश्चिम देशों का एक ग़ुलाम बनाया था।मुस्लमान की ससंकृत व अपनी फ़िक्र से दूर होने से पहले पश्चिम दोश के अतीत इतिहास लिख़ने वालों और पर्यालोचन करने वालों के दृष्ट में इस्लामी अचारण सरासर गिती व पुरी पृथ्वी के अचारणों पर छाई हुई थी।हत्ता उस यूग का मुस्लमान और ग्रन्थ लिख़ने वालों व मुस्लमान पंडित सीमाबद्ध होने के बावजूद इस यूग के पंडित और ज्ञानी जनता से उत्तम व सम्मान के अधिकार रखता थे।लिहाज़ा, अगर मुस्लमान उस ख़ोई हुई अतीत इतिहासिक समाज को अर्जन करने के लिए सब समय चेष्टा करे तो इन मुसलमान के लिए संम्भब है कि दितीयबार उस ख़ोई हुई समाज को अर्जन करें।यह सब बास्तबायित करने के लिए मुस्लमान के लिए उचित है कि स्कूल, माद्रासा, अख़बार, रेडियो, इन्टरनेट वगैरह के माध्यम तथा शेष व ज़रुरी चीजों जो इस्लामी विधान के मुताविक़ हो यह सब का होना बहुत ज़रुरी है।इस के साथ साथ समाज में किसी प्रकार कि ख़राबी फैलने से पहले ज़रुरी है कि स्कूल, मादरसा वगैरह क़ायम करे (ताकि लोग इस से ज्ञानार्ज़न करे)।
परिष्कार
पवित्र इस्लाम-धर्म ने परिष्कार के ऊपर विशेष गूरुत्व दिया है। और इस चीज़ के लिए तीन पथ या रास्ता क़बूल करने के लिए निर्देश प्रदान किया है।1- शराब पीना, ज़िना, लावात, संगीत और वेह चीज़ चीज़ से तमाम व्याधी बिस्तार होती है। उस से दूर रहने के लिए कठिन निर्देश प्रदान किया है।ऊपर जो चीज़ बयान हुआ है बेह तमाम की तमाम चीज़ समाज और मुआशरा की आज़ाद व स्वाधिन को ख़राब कर देती है। और यह चीजें मुआशरा में एक प्रकार की ख़राबी और शरीरिक़ व्य़ाधि में मुबतिला कराते है। और यही कारण है कि इस्लाम इन तमाम ख़राबी व चीजों से बिरदत रहने के लिए हराम घोषणा क़रार दिया है। इस के अनुरुप साफ़-सूथरा परिष्कार ज़िन्दगी बसर करने के लिए कुछ संविधान व क़वानीन जो इंसानों की सहत के मुताविक़ है जारी किया है।जैसा कि साफ़, सुथरा परीष्कार रहना और परिष्कार रहने के लिए इसलाम ने सख़्त निर्देश जारी किया है. अपने शरीर को प्रत्येकदिन गुस्ल दिलाना, शरीर के खराब रक्त को निकाल देना, (हिजामत करना) तेल मालिश करना, आख़ों में प्रत्येकदिन सूर्मा लगाना, प्रत्येकदिन सही तरीके से अपने दातों को मिस्वाक करना, ज़रुरत के बाहर यानी बेशि बालों को काटना, सही समय पर विबाह करना, उपवास रख़ना, और ख़ाना ख़ाते के समय सेहत की तमाम संविधान व आईन का अनुशरण करना अथवा....।2- कोई भी व्याधि पुराना होने से पहले व्याधि दूर करने के लिए कुछ निर्देश जारी किया है. रोग चिकीतसा करने का उत्तम क़ानून तिब्बुन्नवी (साः) तिब्बूल आईम्माह (अः) व तिब्बूस सादिक़ (अः) व तिब्बूर रिज़ा (अः) की ग्रन्थों में चिकित्सा कि उच्चतम प्रणलिया बताई गई है. यह व्यतीत अपनी सेहत के अग्रसर के लिए विशेष गूरुत्व भी दिया है।3- एक डॉक्टर व चिकीत्सक को पुरी तरह अपने दायित्व व कर्तव्य निभाने के लिए सख़्त निर्देश दिया है। और अच्छी से अच्छी चिकत्सा पर ज़ोर दिया है, और ऊन व्यक्तियों यानी एक डॉक्टर को मानवी अदार प्रदान किया गया है, इस्लामी आईन व संविधान के मुताविक़ अगर कोई डॉक्टर किसी एक मरीज़ को भूले के दर्मियान दवा लिख़ दि तो यह दायित्व उस डॉक्टर के ऊपर है और इस्लाम के आईन की मुताविक़ मरीज़ की तमाम दायित्व उस डॉक्टर पर है।यह व्यतीत और भी कहा गया है. कि मरीज़ के मर्ज़ को छोटी करके देखा जाएं ताकि एक मरीज़ के लिए मुमकिन हो सके कि अपने को इस व्यधि से परित्राण दिला सके। और अपने मर्ज़ को निप्टा सके, एक डॉक्टर को चाहीए कि मीठी मीठी ज़बान के माध्यम एक मरीज़ के साथ कथण करे और उस के साथ अच्छे बरताऔ करे, और गंभीर चेताउना के साथ अपना काम व दायित्व को पुरा करें और यह काम एक डॉक्टर के महत्वपूर्ण दायित्व में से है।लिहज़ा इस्लाम ने अपनी अनुसरण करने वालों व शरीर-सेहत को ठीक रख़ने के लिए एक क़ानून-संविधान बनाया है। और इस क़ानून की पैरुवी हमारे पहले के व्यक्तियों ने इस क़ानून को क़बूल व ग्रहण किया था और उस पर अमल भी किया था।बड़े दुःख़ के साथ कहना पढ़ता है कि आज के यूग में डॉक्टर व ज्ञानी व्यक्ति एक मर्ज़ को दूर करने से विचलित है और इस कारण कि वजह से हमारे चारों तरफ़ व्याधि व मरीज़ों की भरमार है। लिहज़ा इस यूग में साईन्स डॉक्टरी के साथ साथ अगर अपनी सहत व शरीर को परीत्ताण दिलाने के लिए इस्लामी डॉक्टरी शुरु करें तो शरीर में कठिन से कठिन व्याधि प्रवेश न करती और जल्दि उसकी सहत भी ख़राब न होती फलस्वरुप सही व सठिक शरीर को लेके सही तरीके से जीवन बसर करना हमारा दायित्व है।
परिवार का संगठन
पवित्र इस्लाम धर्म में विवाह के लिए ताकीद की है, जो एक नारी व पूरुष के गुणवली चाहीदा को पूरण करता है, और इस्लाम ने इस चीज़ के लिए बड़ा गूरुत्व व ताकीद की है।हदीस में वर्णन हूआ हैः की इस्लाम में विवाह एक ऐसी चीज़ है चीज़ से बड़ कर और अपर कोई चीज़ नहीं हो सक्ति और ना इंसान इस से बड़ी आशा प्रकाश कर सकता है। इस्लाम में एक परीवार बनाने के लिए इस से उत्तम और कोई चीज़ बयान नहीं की है। इस्लाम में इस विवाह को आधा दीन बताया है हदीस में ईर्शाद हेः विवाहित व्यक्ति अपने अधे धर्म का संरक्षक किया है।मानव जीवन में जब यौन का एक ढेव ख़ेलता है तो इस्लाम उस समय को विवाह करने का एक उत्तम समय बताया है। और इस्लाम में बालक के लिए 15 साल और बालिका के लिए 9 साल बयान किया है। इस्लाम कि दृष्ट में वेह दोनों के लिए उम्र होने का एक उत्तम समय निर्धारण किया है. और इस समय वेह दोनों विवाहित बंधन से जुढ़ सक्ते है। हालाकी इस्लाम में बालक व बालिका के लिए एक मुनासिबत को बयान नहीं किया है। और ना उस विषय को निर्वाचन किया है, एक मुस्लमान नारी व पूरुष के मर्ज़ि की मुताविक़ अपने विवाह के ज़रीए समस्त प्रकार रिश्तेदारी व अपना चाहिदा के पूर्ण कर सकता है। नतीजे में समाज और मुआशिरा को एक ख़राब मुआशिरा से बचा सकता है।इस्लाम में नारी व पूरुष को हराम पद्धती से मिला-मिशा रिश्तेदार को हराम क़रार दिया है और नारीयों के लिए पर्दा व हिजाब परिधान करने के लिए ताकीद क़रार दिया है। नतीजे में समाज में ख़राब चरित्र का परिमाण कम होगा, और परिवार बंधन की एक मजबूत ख़ुूटी बनेगी। बीबी व शौहर के लिए मौहब्बत के साथ ज़िन्दगी करने का समय फराहम हो जाये गा और ईमान व इमान्दारी के साथ अपनी आख़लाक़ी ज़िम्मेदरी को निभाना व सम्पादन में एक मोह्काम सहायता मिलेगा।बीबी अपने गृह के तमाम काम और शौहर कि चाहतायों को पूर्ण करेगी और शौहर बाहर के तमाम प्रकार का काम विशेष करके अर्थव्यावस्था को सठिक करेंगें।अगर सब ऐसी ज़िन्दगी करने पर राज़ी हो जाएं तो भविष्य नस्ल कि उज्ज्वल होने में एक उत्तम कारण बनेगा ।इस्लाम में नारीयों को भारी व कठिन काज-काम से बिरत रहने का निर्देश दिया है। और गृह में तमाम प्रकार कामों को अंजाम देने का निर्देश जारी किया है, लेकिन इस काम से बिरत रहने का निषेध जारी नहीं किया. अलबत्ते यह बात परिष्कार है की इस्लाम में नारीयों के लिए बाहर का कार्य करने का निशेध व बिरोध नहीं किया है लेकिन वेह काम जो नारीयों के लिए मूनासिब और खूबसूरत है। और यह व्यतीत समस्त कामों को हराम घोषित किया है। लेकिन इस्लाम में नारीयों के लिए ज्ञान अर्जन करना जाएज़ अथवा मजबूर किया है।यह कहना अवश्यक है, की पश्चिम देशों के समस्त ज्ञानी व्यक्तियों ने इस चीज़ को क़बूल किया है कि सही व सालिम जीवन बसर करना समस्त शरिरीक चाहतों को पूर्ण करता है। और मानव जीवन में शान्ति विस्तार के लिए सहायता मिलता है। सही व सालिम संतान अर्जन करना और अपनी तक़दीर को अच्छा बनाने के लिए इस्लाम ने जो उत्तम विधान बनाया है वेह यह है कि इस्लाम को अपना धर्म क़रार दे और विवाह करके एक परिवर, बिवी व शौहर के तमाम दायित्व को अंजाम दें ।सही व सालिम ज़िन्दगी बसर करना वगैरह....। यह सब मानव जीवन से संम्धिंत है। अगर इंसान इस्लामी आईन व निर्देश के मुताविक़ ज़िन्दगी बसर करे और उस क़ानून पर अमल करे, तो यक़ीनन इंसान का नसीब और तक़दीर परिवर्तन हो जाए गा. और सारी मौसीबतें और दुःख़ से मुक्त हो जाए गा।दितीयः समाज में अच्छे सदाचरण के साथ पेश आना, तथाः माता-पिता संतान, रिश्तेदार, गुरु, शार्गिदों के साथ इस्लामी सदाचरण से पेश आना वगैरह.... और समाज में इस्तरह ज़िन्दगी बसर करने से व्यक्तियों के दर्मियान अमन, मुहब्बत, शान्ति लाता है ।
इस्लाम मानव जीवन को चलाया करता है
इस के पूर्व कथा हूई है, कि मानव जीवन को चलाने के लिए ख़ूबसूरत व उत्तम क़ानून पवित्र इस्लाम-धर्म में उपस्थित है। जो बयान हूआ है. कि इस्लाम एक ऐसा उत्तम व ख़ूबसूरत क़ानून है, जो आजके पृथ्वी में किसी समाज, हत्ता किसी प्रकार धर्म से उधारण दिया नहीं जा सकता और ना मिलता है।इस्लामी समाज बनाना, यानी महा इश्वर पर विश्वास का एक उत्तम ज़रीया है, और मानव जीवन का अल्लाह पर विश्वास का ताआदुल बरक़रार रख़ता है। चीज़ से इंसान इस्लामी समाज और उस के क़वानीन को ग्रहण करके अपने क़दम को अग्रसर कर सकता है. हलाकि इस्लामी जैसा समाज गठन के लिए, मानव जीवन का क़ानून इस सिल्सिले से समाज से बहुत दूर है।इस्लामी समाज में मानव जीवन के लिए एक ख़ूबसूरत व उत्तम ईमानी पाया जाता है, और इस में किसी प्रकार कि दुःख़, कष्ट, व समस्सया उपस्थित नहीं है। लेकिन इस्लामी समाज में उठा-बैठा करने वालों के लिए एक रिश्तेदरी मौहब्बत व भाई चारह का क़ानून पाया जाता है और इस क़ानून के छाए में जीवन बसर करना समस्त प्रकार कि मसिबत और दुःख़ कष्ट को भूला देता है।इस्लामी देशों में जो काम बयान करने का उपयुक्त है उस का सूचीपत्र यह है किः ज्ञान व तालीम बिस्तार कराना, तिजारत व कम्पनी ख़ोलना, किसानों के कामों में सहायता करना, तिजारत और हुकूमती पैमाने का फैदा वगैरह......।इस्लामी देशों में अत्याचारी कि अत्याचार, व पार्टिबाज़ी, हैरानी, और नियम पद्धति के ख़िलाफ वर्ज़ि, और ग़रीबों की कोई सम्स्या उपस्थित नहीं है।हाँ अगर मुसलिम क़ौम अपने दर्मियान भाई भ्रता के नियम से ज़िन्दगी बसर करने के लिए चेष्टा करे तो उन जनता के लिए एक मोती ज़िन्दगी अपेक्षा करेगी। लेकिन इस ज़िन्दगी में शर्त है कि पवित्र कुरआन व रसूल (स0) और मासूमीन (अ0) का बताया हूआ निर्देश पर अमल करना बहुत सख़्त ज़रूरी व अवशक है। और इस के साथ साथ इस्लामी एकत्रित व भाईचारह, आज़ादी व इस्लाम के विभिन्न प्रकार क़ानून के ऊपर अमल करना अवशक है। प्रत्येक मूसलमान पर दायित्व है कि पृथ्वी में इस्लामी राष्ट्र सृष्ट करने के लिए इस्लामी क़वानीन के मुताविक़ समाज बनाना, और सब समय जान व माल देके चेष्टा करना. और आल्लाह से तौफ़िक़ तल्ब करना (ताकि हम सब को उसी तरह जीवन बसर करने का तौफ़िक़ इनाएत फ़रमाएं।अमीन या रब्बल आलामिन।
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