Thursday, January 17, 2008

कुरान पाक का बयान

कुरान पाक का बयान
अल्लाह तआला इरशाद फ़रमाता है- जब क़ुरान पढ़ा जाए तो उसे कान लगाकर सुनो और ख़ामोश रहो कि तुम पर रहम हो, (कनज़ुलइमान तरजुमा क़ुरान पारा- 9, रुकु- 14, सफ़ा- 284)।रसुलल्लाहो अलैहे व सल्लम ने फ़रमाया जो क़ुरान पाक पढ़ेगा और उसके मुताबिक़ अमल करेगा, क़यामत के दिन अल्लाह तआला उसके माँ-बाप को एक ताज पहनाएगा, जिसकी रोशनी सूरज की रोशनी से बेहतर होगी (जब माँ-बाप को इतनी इज्ज़त मिलेगी तो पढ़ने वाले को कितनी इज्ज़त अल्लाह तआला अता फ़रमाएगा)। अल्लाह तआला उस शख्स को जहन्नम का अज़ाब न देगा, जिसने क़ुरान हिफ्ज़ किया और क़ुरान के हाफ़िज अल्लाह तआला के दोस्त हैं। कुरान हिफ्ज़ से (बग़ैर देखे) पढ़ना एक हज़ार दर्जा (सवाब) रखता है।कुरान बग़ैर हिफ्ज़ से (यानी देखकर) पढ़ना दो हजार दर्जा (सवाब) रखता है और लोगों में सबसे बड़ा इबादत गुज़ार वो है, जो सबसे ज्यादा क़ुरान की तिलावत करता है, बेशक ज़िस शख्स के सीने में क़ुरान का कोई हिस्सा नहीं, यानी कोई सूरत या आयत याद नहीं, वो वीरान घर की तरह है।रसूलुल्लाह सल्लल्लाहो अलैहे व सल्लम ने फ़रमाया क़ुरान पढ़ो इसलिए कि वो क़यामत के दिन अपने पढ़ने वाले की सिफ़ारिश बनकर आएगा और उसकी शिफ़ादत कुबूल होगी और इमामे बुख़ारी ने रिवायत की है प्यारे नबी सल्ललाहो अलैह व सल्लम ने फ़रमाया कि बेशक तुम में सबसे ज्यादा फ़जीलत वाला वो है, जिसने कुरान सीखा या सिखाया (बुख़ारी शरीफ़ जिल्द 2, सफ़ा 752)।मसअला- क़ुरान पाक ज़रूरत के मुताबिक 23 साल में थोड़ा-थोड़ा नाजिल हुआ और यक बारगी माह रमज़ान के शबे क़दर में नाज़िल हुआ।मसअला- तिलावत शुरू करते वक्त आऊज़ो बिल्लाह पढ़ना मुस्तहब है और बिस्मिल्लाह पढ़ना सुन्नत। तिलावत के दरमियान कोई दुनियावी काम या बात करें तो आऊज़ो और बिस्मिल्लाह फिर से पढ़ लें।मसअला- जब ख़त्म हो तो तीन बार क़ुलहव्ललाहो अहद यानी सूरे इख्लास पढ़ना बेहतर है।मसअला- क़ुरान देखकर पढ़ना ज्यादा सवाब रखता है, बग़ैर देखकर पढ़ने से, क्योंकि क़ुरान का देखना उसका छूना, उसको पास रखना भी सवाब है।मसअला- मजमे में सब बुलंद आवाज़ में पढ़ें ये हराम है। अकसर तीजों या क़ुरान ख्वानी की मजलिसों में बुलंद आवाज़ से सबके सब पढ़ते हैं, यह हराम है। अगर चंद शख्स पढ़ने वाले हों तो सब आहिस्ते पढ़ें। अगर मस्जिद में दूसरे शख्स नमाज़ में या दूसरे दीनी बातों में मसरूफ हैं या दुरुद शरीफ़ पढ़ने में मशगूल हैं तो कलामे पाक आहिस्ता पढ़ें। यानी ख़ुद पढ़ें और ख़ुद ही सुनें, वरना पढ़ने वाला ही गुनाहगार होगा।मसअला- जब बुलंद आवाज़ से क़ुराने पाक पढ़ा जाए तो तमाम हाज़रीन पर सुनना फ़र्ज़ है, जबकि वो मजमा सुनने के लिए ही हो, वरना एक का सुनना काफी है अगरचे और लोग काम में हों। बुलंद आवाज़ से पढ़ना अफ़जल है, जबकि किसी मरीज़ या सोते को तकलीफ़ न पहुँचे।मसअला- क़ुरान की कसम भी कसम है, अगर उसके ख़िलाफ होगा कफ्फ़ारा लाज़िम आएगा।मसअला- क़ुरान की किसी आयत को ऐब लगाना या उसकी तौहीन करना या उसके साथ मज़ाक या दिल्लगी करना या आयते क़ुरान को बेमौके महल पढ़ देना के लोग सुनकर हँसें ये क्रुफ है।मसअला- क़ुराने पाक पुराना या बोसिदा हो गया, इस क़ाबिल न रहा कि उसमें तिलावत की जाए और यह अंदेशा है कि इसके पन्ने बिखर जाएँगे, तो किसी पाक कपड़े में लपेटकर ऐहतियात की जगह या क़ब्रस्तान में दफना दिया जाए और दफ़न के लिए कब्र बनाई जाए और उस पर तख्ता लगाकर छत बनाकर मिट्टी डालें, ताकि कुरान के पन्नों पर मिट्टी न गिरे। अगर क़ुरान गिर जाए तो कुछ सदक़ा कर दें और अल्लाह तआला से तौबा इस्तगफार करें, ताकि अल्लाह तआला माफ़ फरमाए।मसअला- सूराह इक़रा (अलक़) की क़ुरान की सबसे पहली सूरत नाज़िल हुई, जो मक्की है और इसमें 19 आयते हैं (तफसीर जलालैन- सफा 503)।मसअला- क़ुरआन में 30 पारे हैं, जो 32,3760 हरुफ़ हैं। 114 सूरते हैं। 540 रुकु हैं। 14 सजदे हैं। 6666 आयते हैं। 5320 ज़बर हैं। 39582 ज़ेरा हैं। 8804 पेश हैं। 105684 नुक़ते हैं (दीन मुस्तफ़ा स. 46)।मसअला- जब नमाज़ में इमाम वलदद्वालीन कहें तो आहिस्ता आमीन कहें, बेशक फरिश्ते भी आमीन कहते हैं और जिसकी आमीन फरिश्तों के मुवाफ़िक होगी अल्लाह तआला उसके अगले और पिछले गुनाह बख्श देगा (बेज़ावी शरीफ़ जिल्दे अव्वल स. 11)।

No comments: