Thursday, January 17, 2008

इस्लाम पर आलोचना क्यों?

इस्लाम पर आलोचना क्यों? मो० अहमद काज -
इस्लाम दुनिया का एक मात्रा धर्म है जो हमेशा चर्चा का विषय बना रहता है और इस परिदृश्य में ये कहना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि जितनी चर्चा इस्लाम पर हो चुकी है उतनी किसी धर्म पर नहीं हुई होगी। ११सितंबर २००१ को अमेरिका स्थित वर्ल्ड ट्रेड टावर और रक्षा कार्यालय पेंटागन पर हुए हमले के बाद इस बहस ने नई दिशा ले ली है। यानी इस्लाम को सीधे सीधे आतंकवाद से जोड़ने के साथ ये आरोप लगाये जा रहे हैं कि इस्लाम हिंसा को बढ़ावा देता है।इस संबंध में प्रसिद्ध बुद्धिजीवी अकबर अहमद का स्पष्टीकरण ध्यान देने योग्य है।अकबर अहमद के अनुसार सितंबर २००१ में अमेरिका पर आतंकवादी हमला दो बड़ी संस्कृतियों के बीच टकराव का कारण बन गया जिसमें एक ओर अमेरिका और उसके पश्चिमी सहयोगी देश हैं और दूसरी ओर पूरा इस्लामी समाज है। दोनों संस्कृतियां चूंकि समाजिक रूप से एक दूसरे के भिन्न हैं इसलिए उस त्रास्दी के बाद जिसमें ५ हजार लोग मारे गये थे उनके संबंध में तनाव बढ़ गया।अकबर अहमद ने अपनी किताब श्रवनतदमल पद जव प्ेसंउरू ज्ीम ब्तपेपे वि ळसवइंसपेंजपवद में अपने विचार पेश करते हुए कहा है कि वर्ल्ड ट्रेड टावर पर हमले के बाद आतंकवाद के विरूद्ध युद्ध का विधिवत आरंभ हो गया और ये एक ऐसा युद्ध है जिसका अतीत ने कोई उदाहरण नहीं था।क्योंकि सामने कोई दुशमन नहीं। यही कारण है कि इस युद्ध के जल्द समाप्त होने की संभावना नहीं है। आतंकवाद विरोधी युद्ध कोई सांस्कृतिक या धार्मिक युद्ध नहीं फिर भी इस में दोनों पहलू शामिल है।अहमद ने जो ब्रिटेन में पाकिस्तान के उच्च आयुक्त भी रह चुके हैं, कहा है कि इस युद्ध में उस इस्लाम को हिंसा का जिम्मेदार करार दिया जा रहा है जिसका संदेश हिंसा के विरूद्ध है।कुछ मुसलमानों की गतिविधियां जैसे ओसामा बिन लादिन के इरादों और अफ्रीका में अमेरिकी दूतावासों पर हमलों को मुसलमानों के उग्रवाद क्षेत्रा की ओर से वैध ठहराने के कारण इस्लामी दुनिया अकारण समस्या में उलझ कर रह गई है। अहमद कहते हैं कि मुसलमान भी किसी हद तक पश्चिमी शक्तियों क्षुब्ध हैं और वह समझते हैं कि अमेरिका फलसतीन समस्या को हल करने में रूचि नहीं रखता। कश्मीर और अफगानिस्तान जैसी समस्याओं पर भी वह अमेरिकी विचारों से संतुष्ट नजर नहीं आते।अपनी किताब में अहमद ने कहा है कि सितंबर २००१ की घटना पर बहुत सारे मुस्लिम देशों में गहरे दुःख व्यक्त किये गये थे। क़ाहिरा,तेहरान और इस्लामाबाद के अतिरिक्त दूसरे मुस्लिम देशों में प्रार्थना सभाएं की गई लेकिन उनका प्रभाव अस्थाई रहा है और धीरे-धीरे सहानुभूति नाराज+गी में बदल गई क्योंकि अमेरिका ने पहले अफगानिस्तान और फिर इराक़ पर चढ़ाई कर के मुसलमानों की भावनाओं को घायल कर दिया।एक खबर ये है कि लंदन में रहने वालों की एक बड़ी संख्या इस्लाम को सम्पूर्ण रूप से असहन का धर्म और आतंकवाद का जिम्मेदार समझती है। इवनींग स्टैंडर्ड के एक सर्वे के हवाले से बताया गया है कि लंदन में रहने वाले ७०१ लोगों से सवाल पूछे गये थे उनमें ३७प्रतिशत लोगों को ७जुलाई के आतंकवाद में भी किसी न किसी हद तक इस्लाम का हस्तक्षेप नज+र आया। एक तिहाई लोगों ने कहा कि कट्टरपंथी इस्लामी एजेंडा रखने वाले ऐसे ग्रुपों पर भी पाबंदी लगा दी जाए जिसका सीधा संबंध आतंकवाद से नहीं है।,२० प्रतिशत लोगों ने कहा कि किसी भी धार्मिक श्रद्धा वाले स्ेकुलों को प्रोत्साहन नहीं दिया जाना चाहिए। लेकिन एक तिहाई लोगों ने इस विचार से सहमति व्यक्त नहीं की। १० प्रतिशत लोगों का विचार था कि धार्मिक स्कूलों की संख्या कम कर दी जाए। आधे से अधिक लोगों ने महसूस किया कि लंदन में रहने वाले मुसलमान शेष लोगों से अलग थलग हैं। इदुलफित्रा की छुट्टी का भी ये कह कर विरोध किया गया कि इस त्योहार को क्रिस्मस या ईस्टर के बराबर का दर्जा नहीं दिया जाना चाहिए।जहां तक ब्रिटिश सरकार का संबंध है तो वह आतंकवाद से संबंधित घटनाओं के लिए केवल मुसलमानों को जिम्मेदार समझती है और वहां आतंकवाद में शामिल लोगों को दूसरे देशों के मुकाबले में अधिक हिरासत में रखा जा सकता है।लंदन में मानवाधिकार संगठन लिबर्टी की ओर से जारी एक रिपोर्ट के अनुसार लंदन में आतंकवाद में शामिल लोगों को हिरासत में रखने की अवधि २८ दिन है जो दूसरे देशों के मुकाबले में ज्यादा है और ब्रिटिश सरकार इस अवधि में और बढ़ोतरी करने पर विचार कर रही है। लिबर्टी की रिपोर्ट में कहा गया है कि संगठन की ओर से इस संबंध में १५ देशों के आतंकवाद विशेषज्ञ और वकीलों के साक्षात्कारों के बाद पता चला है कि अमेरिका में आतंकवादियों को हिरासत में रखने की अवधि २ दिन, फ्रांस में ६ दिन, इटली में ४ दिनऔर तुर्की में ७से ८दिन है जबकि इटली जहां मैड्रिड बम धमाकों में १९१ व्यक्ति मारे गये, संदिग्ध व्यक्त्यों को हिरासत में रखने की अवधि केवल ५ दिन है जबकि आस्ट्रेलिया में ये अवधि १२ दिन है जो ब्रिटेन के बाद दूसरे नबंर पर है।रिपोर्ट में कहा गया है कि दूसरे देशों को भी ब्रिटेन की तरह अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद की चुनौतियों का खतरा है लेकिन हिरासत की अवधि आश्चर्यजनक है।लिबर्टी की रिापोर्ट ऐसे समय में प्रकाशित हुई है जब ब्रिटिश सरकार इस अवधि में बढ़ोतरी पर विचार कर रही है। इधर आतंकवाद और रक्षा मामलों से संबंधित ब्रिटिश मंत्री टोनी मैक का विचार है कि कुछ मामलों में अधिक से अधिक समय की आवश्यकता पड़ती है।जिस तरह अफगानिस्तान और इराक़ पर अमेरिकी नेतृत्व में पश्चिमी देशों में अपना वर्चस्व बना रखा है और फिलिस्तिनीयों की समस्या को लगातार नज+र अंदाज किया जा रहा है तथा ईरान पर हमले का बहाना ढूंढा जा रहा है वह भी इस्लाम दुशमनी का ही स्पष्ट इशारा है। कहते हैं कि जब किसी व्यक्ति, संस्थान, देश या धर्म को बदनाम करना हो तो उसके विरूद्ध अफवाहों का बाजार गर्म कर दो। इस्लाम के साथ वही हो रहा है। अफवाहें फैलाकर इस्लाम को निशाना बनाया जा रहा है जो निंदनीय है।

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